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________________ 230 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य अर्थात् वर्ण एक व्यापक शब्द है जो आँख के कृष्ण पटल और उससे संबद्ध शिराओं की क्रिया से उद्भूत आभास को सूचित करता हैरक्त, पीत, नील, कृष्ण और श्वेत इसके उदाहरण हैं। जैन दार्शनिकों ने वर्ण के अनंत प्रभेद या उपभेद माने हैं। हम सौर वर्णपटल (Solar Spectrum) के वर्णों का तरंग प्रमाणों (Wavelengths) की विभिन्न अवस्थितियों (Stages) की दृष्टि से विचार करें तो ये तरंगें अनंत होंगी और इनके अनंत होने के कारण वर्ण भी अनंत सिद्ध होंगे। कारण कि यदि एक प्रकाश तरंग प्रमाण में दूसरी प्रकाश तरंग से अनंतवें भाग भी न्यूनाधिक होती है तो वे दो असमान वर्णों की द्योतक होती हैं। इस प्रकार वर्ण अनंत हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों को दस लाख वर्गों की जानकारी है, परंतु हमारी आँखें इन वर्गों में से केवल 378 वर्णों (रंगों) को ही देख पाने में समर्थ व सक्षम है। अनेक रंग ऐसे हैं जिन्हें देखकर अनुभव कर सकते हैं, परंतु उनको कोई निश्चित नाम नहीं दे सकते। वर्ण का दिखना अनुभूति पर निर्भर-वर्ण-विषयक एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि वर्ण का दिखना अनुभूति पर भी निर्भर करता है। इस संबंध में गेटे का एक अनुभव यहाँ प्रस्तुत किया जाता है। एक बार गेटे ने रात को सराय में घुसते समय गोरे रंग, काले बाल वाली एक स्वस्थ महिला को धुंधली रोशनी में बैठे देखा। वह गहरे लाल रंग की पोशाक पहने थी। उस महिला के जाने के पश्चात् गेटे सामने की सफेद दीवार पर एकटक देखता रहा। उसे ऐसा अनुभव हुआ कि उस स्थान पर एक काली मुखाकृति है, जिसके चारों ओर प्रभा मंडल है और उसकी पोशाक का रंग गहरा हरा है। ऐसा ही अनुभव साइकम लैम्प के प्रयोग में भी होता है। यदि हम लैम्प की ओर टकटकी लगाकर देखते रहें और फिर ऊपर
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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