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________________ जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य जगत् की आगामी उपलब्धियों पर अपना मत व्यक्त करते हुए लिखते हैं-"महानतम् आविष्कार आत्मा के क्षेत्र में होंगे। एक दिन मानव जाति को पुनः प्रतीत हो जायेगा कि भौतिक वस्तुएँ आनन्द नहीं देतीं और इनका उपयोग स्त्री-पुरुषों को सृजनशील तथा शक्तिशाली बनाने में बहुत ही कम है। तब वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशालाओं को ईश्वर और प्रार्थना के अध्ययन की ओर उन्मुख करेंगे। जब वह दिन आयेगा तब मानव जाति एक पीढ़ी में वैज्ञानिक क्षेत्र में उतनी उन्नति कर सकेगी जितनी आज की चार पीढ़ियाँ भी नहीं कर पायेंगी।" वर्तमान विज्ञान के अनुसंधान क्षेत्र में चेतन तत्त्व को स्वीकार करने वाली ‘आदर्शवाद' नामक एक शाखा ने जन्म ले लिया है। आदर्शवादी वैज्ञानिक प्रत्यय (Idea), विचार (Thought), अनुभूति (Perception), ईश्वर (God), आत्मा (Soul), चैतन्य (Consciousness) आदि तत्त्वों में विश्व की वास्तविकता का प्रतिपादन करते हैं। आत्मा को अलग तत्त्व के रूप में स्वीकार करने के लिए यह आवश्यक है कि वह शाश्वत तत्त्व प्रमाणित हो, देह की मृत्यु के साथ आत्मा की मृत्यु न हो और देह की मृत्यु के पश्चात् भी आत्मा का अस्तित्व सिद्ध हो। यदि मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म की सिद्धि हो जाती है, तो आत्मा को शाश्वत तत्त्व स्वीकार करने में किञ्चित् भी संशय नहीं रह जाता है। कुछ वर्षों पूर्व राजस्थान विश्वविद्यालय के परामनोवैज्ञानिक पद्धति से पुनर्जन्म की देश-विदेश की सैंकड़ों घटनाओं पर अनुसंधान किया है। बनर्जी ने अपने अनुसंधान से फलित होने वाले तथ्यों का प्रकाशन सन् 1936 के नवभारत टाइम्स में “पुनर्जन्म का सिद्धांत दृष्टि से विश्वसनीय 1. ज्ञानोदय, अक्टूबर 1959, पृष्ठ 115
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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