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________________ 205 पुद्गल द्रव्य दोनों का द्योतक है। परमाणु के मेल से स्कंध बनता है और एक स्कंध के टूटने से भी अनेक स्कंध बन जाते हैं। पुद्गल में अगर पूरण गुण अर्थात् संयोजक शक्ति न होती तो ये परमाणु अलग-अलग बिखरे पड़े रहते, उनसे किसी भी पदार्थ की रचना नहीं हो पाती और गलन गुण अर्थात् वियोजक शक्ति न होती तो सब परमाणु मिलकर मात्र एक पिण्ड बन जाते और अलग-अलग पदार्थ का रूप न लेते। तात्पर्य यह है कि विश्व के पदार्थों की विविधता, विभिन्नता व विलक्षणता के मूल में पुद्गल के पूरण और गलन ये दोनों स्वभाव ही है। जैनदर्शन में वर्णित स्कंध-रचना के उपर्युक्त सिद्धांत का विज्ञान पूर्ण समर्थन करता है। पहले पुद्गल के पूरण (मिलन) गुण से होने वाली स्कंध-रचना के उदाहरण पेश किये जाते हैं यथा (1) जल को जैनदर्शन मौलिक व स्वतन्त्र तत्त्व न मानकर स्कंधों के मिलने से बनने वाला पदार्थ मानता है। विज्ञान भी इससे पूर्णतः सहमत है जैसा कि जल के स्कंधाणु की रचना के वैज्ञानिक विश्लेषण से स्पष्ट है-ऑक्सीजन के एक अणु में आठ आवेश शून्य और आठ धन आवेश वाले न्युक्लोओनों से केन्द्र कण की रचना होती है। इसके चारों ओर आठ इलेक्ट्रोन परिभ्रमण करते हैं। हाइड्रोजन के एक अणु में एक धन आवेश वाला न्युक्लीओन होता है जिसके चारों ओर एक ही इलेक्ट्रोन घूमता है। दो हाइड्रोजन के अणु और एक ऑक्सीजन का अणु मिलने पर पानी का एक स्कंधाणु बनता है। (2) नमक को भी जैनदर्शन स्कंधों के मिलनजन्य पदार्थ मानता है। आधुनिक वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार नमक के स्कंधाणु की रचना अग्र प्रकार से है
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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