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________________ 88 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य "किण्वं वर्षाकालोद्भवछत्राणि।"' वर्षा-काल में उत्पन्न छतरी-कुक्कुरमुत्ता किण्व वनस्पति है। अर्थात् जैनागम में आचार पर छाई जाने वाली कालीसी फफूंदी, 1-2 दिन की बासी रोटी पर जमने वाला सफेद या काली रूई का-सा पदार्थ, सड़ी-गली वस्तुओं पर आने वाली फुई को कुहण वनस्पति कहा है। वर्तमान वनस्पति विज्ञान भी इन सब पदार्थों पर आने वाली फुई या फफूंदी को फंजाई (Fungi) वनस्पति मानता है तथा किण्व-कुकुरमुत्ता-साँप को भी फफूंदी जाति की ही वनस्पति मानता है।' “शैवालमुदकगतकायिका हरितवर्णा"4 अर्थात् जल में रही हरे वर्ण वाली शैवाल भी वनस्पति तथा “कवक: शृङ्गोद्भववांकुरा जटाकारा:।"5 अर्थात् सींगों पर जटाकार अंकुरित वनस्पति ‘कवक' कही जाती है। वर्तमान विज्ञान भी इन दोनों को तथा पन्नवणा सूत्र में पेड़ के तने व छाल में अनंतकायिक वनस्पति को एलगी (Algae) जाति की वनस्पति मानता है। पशुओं के सींग आदि पर उत्पन्न होने वाली वनस्पति में सिमबियोटिक्लीं, जुक्लोरेला, हायड्रा बिरिडस आदि मुख्य हैं।' जैनदर्शन खमीर व मनुष्य के शरीर में भी निगोद जीव मानता है। आधुनिक कीटाणुवाद के जनक लुईपाश्चर ने खमीर को एक वानस्पतिक जीवकोष सिद्ध किया है। खमीर के पौधे की शारीरिक रचना अन्य वानस्पतिक जीवकोषों जैसी होती है। यह या तो गोलाकार होता है या अण्डाकार। वजन में एक ग्राम का दस अरबवाँ हिस्सा होता है। खमीर 1. आशाधर, अनगार धर्मामूल टीका 2. देखिये हा. कृषि-शास्त्र, पृष्ठ 120-125 3. आशाधर, अनगार धर्मामूल टीका 4. आशाधर, अनगार धर्मामूल टीका 5. आशाधर, अनगार धर्मामूल टीका 6. देखिये हा. कृषि-शास्त्र, पृष्ठ 120-125
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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