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________________ 87 वनस्पति में संवेदनशीलता तक, मरे हुए या जीवित जानवरों में और पौधों के अंदर पाये जाते हैं। बहुत से कीटाणु तो हर एक तापक्रम पर रह सकते हैं।" यह कथन जैनागमों में सूक्ष्म स्थावर जीवों के आये हुए विवेचन से मेल खाता है। बैक्टेरिया प्राणी आकृति-प्रकृति के अनुसार कितने ही प्रकार के हैं। इनमें से सूक्ष्म गोलाकार आकृति के कीटाणु जिन्हें कोकाई (Cocai) कहते हैं तथा चक्करदार आकृति के कीटाणु जिन्हें स्पाइरल (Spiral) कहते हैं सूक्ष्म या निगोद वनस्पतिकाय में गर्भित हो सकते हैं। पन्नवणा-जीवाभिगम आदि आगमों में लीलण-फूलण, काईफफूंदी आदि को भी वनस्पतिकाायिक जीव माना है। उनमें से कुछेक का आगे संकेत रूप में विवेचन कर यह दिखाया जायेगा कि सूत्रकारों का उक्त प्रतिपादन पूर्णत: विज्ञान सम्मत है __ प्रथम पणक जाति की वनस्पति को ही लिया जाता है-“पणकंसार्टेष्टक-भूमि-कुड्योदभवकालिकाः' अर्थात् ईंट, भूमि, भींत की नमी में उत्पन्न हुई कालिक-काई-पणक वनस्पति है। इस विषय में वनस्पति विज्ञान का कथन है कि-"दीवालों पर तथा नमी वाले स्थानों पर हरीसी काई होती है फ्यूनेरिया (Funaria) जाति की वनस्पति है।"5 "कुहाणम्-आहारकज्जिकादिगतपुष्पिका।" अर्थात् खाद्य पदार्थ व कांजी आदि में उत्पन्न हुई फफूंदी (फूलण) कुहण जाति की वनस्पति है। 1. कृषि-शास्त्र, पृष्ठ 125 2. कृषि-शास्त्र, पृष्ठ 126 3. कृषि-शास्त्र, पृष्ठ 126 4. आशाधर, अनगार धर्मामूल टीका 5. देखिये हा. कृषि-शास्त्र, पृष्ठ 120-125 6. आशाधर, अनगार धर्मामूल टीका
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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