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________________ 86] [दशवैकालिक सूत्र भावार्थ-साधु छोटे-बड़े सब प्रकार के घरों में जाता है। उनमें राजा, गृहपति, सेठ और आरक्षकों के घरों में कुछ रहस्य-मन्त्रणा के स्थान होते हैं, जहाँ बिना अनुमति के हर कोई नहीं जा सकता । संयमी मुनि दर से ही वैसे स्थानों का वर्जन करे। पडिकुटुं कुलं न पविसे, मामगं परिवज्जए। अचियत्तं कुलं न पविसे, चियत्तं पविसे कुलं ।।17।। हिन्दी पद्यानुवाद शास्त्र निषिद्ध घर में न जाये, नहीं कृपण के घर में भी। न प्रीति प्रतीति-रहित घर में जायें, हों जहाँ विचार सभी ।। अन्वयार्थ-पडिकुटुं = संयमी साधु निषिद्ध । कुलं = कुल में । न पविसे = प्रवेश नहीं करे । मामगं = निषेध करने वाले के यहाँ । परिवज्जए = नहीं जावे । अचियत्तं = अप्रीतिकारी । कुलं = कुल में । न पविसे = प्रवेश नहीं करे । चियत्तं = प्रीतिकारी । कुलं = कुल में ही। पविसे = प्रवेश करे। ____ भावार्थ-जैन श्रमण का स्थान बड़ा ही गौरवपूर्ण है। वह भिक्षाजीवी होकर भी सामान्य भिक्षाचर की तरह जैसे-तैसे माँगकर खाने वाला नहीं है । उसका नियम है कि वह शास्त्र या समाज द्वारा निषिद्ध कुल में व निन्दित कुल में नहीं जाता । जो अपने यहाँ साधु के आने की ना कहता हो उसके यहाँ भी नहीं जावे । जहाँ जाने से अप्रीति हो, उस कुल में प्रवेश नहीं करे और जहाँ जाने से प्रीति हो वैसे घर में ही प्रवेश करे। साणी-पावारपिहियं, अप्पणा नावपंगुरे । कवाडं नो पणुल्लिज्जा, उग्गहं सि अजाइया ।।18।। हिन्दी पद्यानुवाद गृहपति की आज्ञा लिये बिना, ना बन्द कपाट साधु खोले। सन आदि रचित पर्दे को भी. वह अपने से न कभी खोले। अन्वयार्थ-साणी-पावार-पिहियं = सन आदि के पर्दे से ढका हो । अप्पणा = वैसे द्वार को स्वयं । नावपंगुरे (णावपंगुरे) = नहीं खोले । कवाडं = कपाट को । सि = गृहपति की । उग्गहं (ओग्गह) = अनुमति । अजाइया = बिना प्राप्त किये। नो (णो) = नहीं। पणुल्लिज्जा (पणोल्लिज्जा) = खोले। __ भावार्थ-जैन साधु शिष्टाचार का ज्ञाता और विवेकशील होता है। गृहस्थ के घर में प्रवेश करते समय कहीं घर का द्वार सन के वस्त्र या टाटी आदि से ढका हो तो साधु गृहपति की आज्ञा लिये बिना पर्दा नहीं हटावे और कपाट को भी खोलकर भीतर प्रवेश नहीं करे । पास में खड़ा भाई-बहिन स्वयं खोल दे तथा वृक्षलता आदि का संघट्टा (स्पर्श) न हो, तो प्रवेश कर सकता है।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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