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________________ ने नवदीक्षित मुनि के लिये पूर्वश्रुत से दश अध्ययन का निर्वृहण कर दिन के अवसान काल में पूर्ण किया। इसलिये इस सूत्र का नाम दशवकालिक रखा गया, जैसा कि दशवकालिक नियुक्ति में कहा है मणग पडुच्च सेज्जंभवेण निज्जूहिया दस अज्झयणा। वेयालियाई ठविया तम्हा दसकालियं णाम ||15।। नवदीक्षित साधु-साध्वियों के लिये इसका अध्ययन अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है। मुनि मनख ने दशवकालिक सूत्र से शिक्षा प्राप्त कर अपना कल्याण किया और तभी से इस सूत्र का अध्ययन-अध्यापन प्रचुर मात्रा में होने लगा। कौनसा अध्ययन किस पूर्व से? ___ नियुक्तिकार के अनुसार चतुर्थ धर्म-प्रज्ञप्ति अध्ययन आत्म-प्रवाद पूर्व से, पिण्डैषणा अध्ययन कर्मप्रवाद पूर्व से और वाक्य-शुद्धि नामक सप्तम अध्ययन सत्य-प्रवाद पूर्व से उद्धृत किया गया है। शेष अध्ययन नवम पूर्व की तीसरी वस्तु से लिये गये हैं। जैसा कि नियुक्तिकार ने कहा है आयप्पवायपुव्वा, निज्जूढा होइ धम्मपन्नत्ती। कम्मप्पवायपुव्वा, पिंडस्स उ एसणा तिविहा ।।16।। सच्चप्पवायपुव्वा, निज्जूढा होइ वक्कसुद्धि उ। अवसेसा निज्जूढा, नवमस्स उ तइय वत्थुणो।।17 ।। अनुसार द्वादशागी से मनख मुनि के अनुग्रहार्थ इसका निर्वृहण माना गया है। जैसा कि कहा है वीओऽवि अ आएसो, गणिपिडगाओ दुवालसंगाओ। एअं किर णिज्जूढं, मणगस्स अणुग्गहट्ठाए ।।18 ।। इस सूत्र की शिक्षाओं का पालन करने वाला अन्य शास्त्रों को बिना पढ़े भी अपना निश्चित ही कल्याण कर सकता है। विशेष, पाठक मूल सूत्र के स्वाध्याय से ही ज्ञानामृत का पान कर स्वयं अनुभव करेंगे।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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