SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 72] [दशवैकालिक सूत्र अकम्प दशा-शैलेशीभाव को प्राप्त करता है । इसका स्थितिकाल मात्र अ', 'ई', 'उ', 'ऋ', 'लु' इन पाँच ह्रस्व अक्षरों के उच्चारण जितना होता है। जया जोगे निलंभित्ता, सेलेसिं पडिवज्जइ। तया कम्मं खवित्ताणं, सिद्धिं गच्छइ नीरओ ।।24।। हिन्दी पद्यानुवाद जब योगों का रोधन कर, शैलेशी पद पा लेता है। तब कर्मों का पूर्ण क्षपण कर, नीरज सिद्धि पा लेता है ।। अन्वयार्थ-जया = जब । जोगे = मन, वचन और शरीर के योगों का । निलंभित्ता = निरोध करके । सेलेसिं = शैलेशीकरण, शैलवत् स्थिर भाव को । पडिवज्जइ = प्राप्त करता है । तया = तब । कम्मं = समस्त कर्मों को । खवित्ताणं = क्षय करके । नीरओ = सम्पूर्ण कर्म रज से रहित होकर । सिद्धिं = मोक्षधाम को । गच्छइ = प्राप्त कर लेता है। भावार्थ-जब जीवन का अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहता है, तब केवली योग निरोध करते हुए, सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाति शुक्लध्यान की अवस्था में सर्व प्रथम मनोयोग का निरोध करते हैं, फिर वचनयोग और काययोग का निरोध करते हैं, श्वासोच्छ्वास का निरोध करते हैं और पंच ह्रस्व अक्षरों के उच्चारण काल में शुक्ल ध्यान के चतुर्थ चरण में चारों अघाती कर्मों का भी क्षय कर देते हैं। इस तरह आठों ही कर्म क्षय करके सर्वथा कर्म रज रहित होकर सिद्धि गति प्राप्त करते हैं। जया कम्मं खवित्ताणं, सिद्धिं गच्छइ नीरओ। तया लोगमत्थयत्थो, सिद्धो हवइ सासओ ।।25।। हिन्दी पद्यानुवाद जब कर्मों का पूर्ण क्षपण कर, नीरज सिद्धि को पाता है। तब लोकाग्र भाग संस्थित, शाश्वत शिव पद पा लेता है।। अन्वयार्थ-जया = जब जीव । कम्मं = समस्त कर्मों को । खवित्ताणं = क्षय करके । नीरओ = सम्पूर्ण कर्म रज से रहित होकर । सिद्धिं = मोक्ष में । गच्छइ = चला जाता है। तया = तब । लोगमत्थयत्थो = लोक के अग्र भाग पर स्थित । सासओ = शाश्वत । सिद्धो = सिद्ध । हवइ = हो जाता है। भावार्थ-जब जीव वेदनीय, नाम, गोत्र और आयु कर्म का भी क्षय करके सर्वथा कर्म रज रहित होकर, सिद्ध गति को प्राप्त करते हैं, तब औदारिक, तेजस् एवं कार्मण सब छोड़ने योग्य पुद्गल वर्गणा को
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy