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________________ चतुर्थ अध्ययन] [53 I आमुसंतं वा = स्पर्श करने वाले । संफुसंतं वा = बार-बार स्पर्श करने वाले । आवीलंतं वा = ' : निचोड़ने वाले। पवीलंतं वा = विशे ष निचोड़ने वाले । अक्खोडंतं वा = झटकाने वाले। पक्खोडंतं वा = बारबार झटकाने वाले । आयावंतं वा = सुखाने वाले या । पयावंतं वा = बार-बार सुखाने वाले । अन्नं दूसरो को । न समणुजाणिज्जा = भला नहीं समझे। जावज्जीवाए = जीवन पर्यन्त । = तिविहं तिविहेणं. . अप्पाणं वोसिरामि । तीन करण और तीन योग से मन वचन और काया से करूँगा नहीं, कराऊँगा नहीं, करने वाले दूसरे का अनुमोदन भी नहीं करूँगा । भूतकाल में की गई अप्काय की विराधना का हे भगवन् ! मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, आत्म-साक्षी से उसकी निन्दा करता हूँ और गुरु-साक्षी से उसकी गर्हा करता हूँ और पापकारी आत्मा को अप्काय की विराधना से अलग करता हूँ । भावार्थ-संयमी साधु-साध्वी अहिंसा महाव्रत में पृथ्वीकाय के समान सब प्रकार के अका हिंसा का भी त्याग करते हैं। चाहे किसी प्रकार का जल हो, रात्रि में गिरने वाला ओस, हिम, महिकाय, सूक्ष्म अप्काय, करक-ओले और तृणाग्रवर्ती जलकण हो उसका भी स्पर्श नहीं करते। सचित्त जल से कभी शरीर अथवा वस्त्र गीला हो जाय, हाथ की रेखा तक भी गीली हो जाय तो उसको छूना नहीं। उसका विशेष स्पर्श करना, निचोड़ना, अधिक निचोड़ना, झटकना, विशेष झटकना, धूप में सुखाना तथा बार-बार सुखाना आदि क्रियाएँ स्वयं नहीं करना, दूसरों से ये क्रियाएँ नहीं करवाना, करने वाले का अनुमोदन भी नहीं करना, जीवन पर्यन्त तीन करण और तीन योग से भविष्य के लिये ऐसी प्रतिज्ञा करके साधक भूतकाल की ऐसी ही क्रियाओं की निन्दा-गर्दा आदि द्वारा शुद्धि करता है ।। अगणि उक्कं वा, सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा संजय - विरय - पडिहय-पच्चक्खाय - पावकम्मे, दिआ वा, राओ वा, एगओ वा, परिसागओ वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, वा, इंगालं वा, मुम्मुरं वा, अच्चिं वा, जालं वा, अलायं वा, सुद्धागणिं वा, न उंजिज्जा, न घट्टिज्जा, न भिंदिज्जा, न उज्जालिज्जा, न पज्जा - लिज्जा, न निव्वाविज्जा, अन्नं न उंजाविज्जा, न घट्टा - विज्जा, न भिंदाविज्जा, न उज्जालाविज्जा, न पज्जाला-विज्जा, न निव्वाविज्जा, अन्नं उजंतं वा घट्टतं वा, भिदंतं वा, उज्जातं वा, पज्जालंतं वा, निव्वावंतं वा, न समणुजाणिज्जा, जावज्जीवाए तिविहं, तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं, न करेमि, न कारवेमि, करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ।।20।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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