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________________ 52] [दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद संयत विरत और पापों का, निषेध या प्रतिघात किया। भिक्षु भिक्षुणी एकाकी, अथवा परिषद् में स्थान लिया ।। हो काल दिवस या रजनी का, जाग्रत या निद्रावस्था का। ऐसे ही सेवा पठन हेतु, श्रम खिन्न भाव में रहने का ।। सचित्त जल या ओस हेम, धूअर ओले या तृण जल को। निर्मल व्योम पतित जल को, गीले तन अथवा अम्बर को ।। थोड़ा विशेष ना स्पर्श करे, कर से न निचोड़े वस्त्रों को। ना बार-बार दाबे उनको, झटके ना गीले वस्त्रों को ।। प्रस्फोटन भी करे नहीं, आतप में उनको रक्खे ना। इन सभी क्रिया करने वाले को, भला हृदय से जाने ना ।। तीन करण और तीन योग से, मन से वचन से तथा तन से। करूँ न करवाऊँ जीवन भर, अच्छा भी जानूँ ना मन से ।। होता हिंसा से दूर तथा, आत्मा से निन्दा करता हूँ। गर्हा करता गुरुदेव ! सदा, मैं मन से हिंसा तजता हूँ ।। अन्वयार्थ-से भिक्खुवा भिक्खुणी वा = वह साधु अथवा साध्वी जो । संजय.....पावकम्मे = संयमवान् पाप से विरक्त, कर्म की स्थिति को कम करने वाले, भविष्य में पाप कर्म का प्रत्याख्यान करने वाले हैं। दिआ.....जागरमाणे वा = दिन में, अथवा रात में, एकाकी अथवा समूह में रहे हुए, सोए या जाग्रत दशा में । से उदगं वा = जल को । ओसंवा = ओस को । हिमं वा = बर्फ को । महियं वा = धूअर के पानी को । करगं वा = ओले को । हरितणुगं वा = दूब पर पड़े पानी के बिन्दु को । शुद्धोदगं वा = आकाश से गिरा हुआ पानी, तथा । उदउल्लं वा कायं = जल से भीगे हुए शरीर को । उदउल्लं वा वत्थं = जल से भीगे हुए वस्त्र को । ससिणिद्धं वा कायं = अथवा पानी से चिकास वाले (कुछ-कुछ भीगा हुआ) शरीर को । ससिणिद्धं वा वत्थं = कुछ-कुछ भीगे हुए वस्त्र को । न आमुसिज्जा = स्पर्श करे नहीं। न संफुसिज्जा = बार-बार अधिक स्पर्श करे नहीं। न आवीलिज्जा = निचोड़ें नहीं। न पवीलिज्जा = बार-बार निचोड़ें नहीं। न अक्खोडिज्जा = झटके नहीं। न पक्खोडिज्जा = बार-बार झटके नहीं। न आयाविज्जा = सुखावे नहीं । न पयाविज्जा = बार-बार सुखावे नहीं । अन्नं = दूसरे से । न आमुसाविज्जा = स्पर्श करावे नहीं। न संफुसाविज्जा = बार-बार स्पर्श करावे नहीं । न आवीलाविज्जा = निचोड़ावे नहीं। न पवीलाविज्जा = विशेष निचोड़ावे नहीं। न अक्खोडाविज्जा = झटकावे नहीं। न पक्खोडाविज्जा = बार-बार झटकावे नहीं। न आयाविज्जा = सुखावे नहीं। न पयाविज्जा = बार-बार सुखावे नहीं।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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