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________________ 34] [दशवैकालिक सूत्र तिल पपड़ी में जमे तिलकणों की तरह पृथ्वीकाय के शरीर पृथक् सत्ता वाले हैं। सर्दी-गर्मी और पथिकों के चरण-घर्षण से जो शरीर निर्जीव हो चुके हैं, उनके अतिरिक्त पृथ्वी चेतना वाली कही गई है। आचारांग सूत्र के शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन में भी कहा है कि 'संति पाणा पुढो सिया' पृथ्वीकाय के जीव पृथक् पृथक् शरीरों में आश्रित हैं। ___ आऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढो सत्ताअन्नत्थ सत्थपरिणएणं ।।5।। हिन्दी पद्यानुवाद हैं अपकायिक भी जीव सहित, पहले जैसे लक्षण वाले। वे ही अचित्त जो हो जाते, शस्त्रों से आहत तन वाले ।। अन्वयार्थ-आऊ = जलकाय । चित्तमंतमक्खाया = चेतनावान् कहा गया है, जलकाय में । पुढो सत्ता = पृथक् सत्ता वाले । अणेग जीवा = अनेक जीव हैं। सत्थपरिणएणं = अग्नि आदि शस्त्र से परिणत के। अन्नत्थ = अतिरिक्त (जल) सजीव होता है। भावार्थ-पृथ्वी के समान जलकाय भी चेतनावान् कहा गया है। एक-एक बूंद में अनेक जीव हैं। आचारांग के प्रथम शस्त्र परिज्ञा अध्ययन में कहा है कि-“संति पाणा उदगनिस्सिया जीवा अणेगा।" जल में जलकायिक जीव एक बूंद में असंख्य होते हैं और जल के आश्रित हजारों त्रस जीव यानी कीड़े आदि भी रहते हैं, जो विज्ञान के सूक्ष्म दर्शन यन्त्र से भी देखे जा सकते हैं। अग्नि, क्षार आदि विरोधी तत्त्वों से परिणत पानी अचित्त है। इसके अतिरिक्त जल चेतनावान् है, सजीव है। खारा पानी, मीठे पानी का और मीठा पानी, खारे पानी का शस्त्र है। कूप, तलाई, नदी, समुद्र और मेघ का पानी और जमा हुआ पानी का बर्फ भी अप्काय का अंग और जीव का पिण्ड है। तेऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ।।6।। हिन्दी पद्यानुवाद तेऊ सजीव है बतलाया, सब जीव पृथक् सत्ता वाले। शस्त्रों से आहत को तजकर, है अनल सचेतन तन वाले।। अन्वयार्थ-तेऊ = अग्निकाय । चित्तमंतमक्खाया = चेतना वाली कही गई है, उसमें । अणेगजीवा = अनेक जीव । पुढोसत्ता = पृथक् सत्ता वाले हैं। सत्थपरिणएणं = शस्त्र परिणत के। अन्नत्थ = अतिरिक्त वे अग्निकाय भी सजीव हैं। भावार्थ-तेजस्काय अग्नि को चित्तवान् कहा गया है। उल्का, अंगार, ज्वाला और विद्युत् आदि सब प्रकार की अग्नि सजीव है। अंगार के सूक्ष्म कण में भी असंख्य जीव हैं। अंगुल के असंख्यातवें भाग
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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