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________________ तृतीय अध्ययन] [19 मूलए सिंगबेरे य, उच्छुखंडे" अनिव्वुडे । कंदे मूले" य सचित्ते, फले” बीए य आमए ।।7।। हिन्दी पद्यानुवाद जो सचित्त मूली या अदरक, और इक्षु खंड को ग्रहण करे। कंद मूल और फल सचित्त, कच्चे बीजों का अशन करे ।। अन्वयार्थ-मूलए = मूला । य = और। सिंगबेरे = अदरख । उच्छुखंडे = इक्षु के खण्ड (टुकड़े)। अनिव्वुडे = बिना पका हुआ (ये सब कच्चे लेना)। कंदे = सूरणकंद आदि कंद । य = और । मूले सचित्ते = सचित्त लता, वृक्षादि के फल-फूल या उनकी जड़ें। य = और । फले = फल तथा। आमए = कच्चे । बीए = बीज । भावार्थ-जैन मुनि अचित्त वस्तुओं का भोजी होता है, इसलिए वह (मूला) मूली, अदरख, कच्चे इक्षु खण्ड, सचित्त कन्दमूल और कच्चे फल तथा तिल, ज्वार आदि सचित्त बीजों का उपयोग भी नहीं करता। क्योंकि इनके सेवन से जीव-हिंसा की वृद्धि होती है। अत: पूर्ण हिंसा त्यागी मुनि इनका वर्जन करता है। सोवच्चले सिंधवे लोणे, रोमालोणे" य आमए। सामुद्दे पंसुखारे य, कालालोणे" य आमए ।।8।। हिन्दी पद्यानुवाद सौवर्चल, सैन्धव और रोमन, सामुद्रिक बिन पके लवण । ऊषर एवं कृष्ण लवण, मुनिजन करते इनका वर्जन ।। अन्वयार्थ-आमए = सचित्त कच्चा । सोवच्चले = संचल नमक । सिंधवे लोणे = सैंधा नमक । य रोमालोणे = और रोम का नमक । सामुद्दे = समुद्र का नमक । य = और । पंसुखारे = ऊसर भूमि का क्षार । आमए = सचित्त । य = और । कालालोणे = काला नमक । भावार्थ-जैन साधु के लिए सचित्त नमक भी अग्राह्य बतलाया है, कारण कि कच्चे नमक में असंख्य पृथ्वीकाय के जीव माने गये हैं । त्यागी मुनि के लिए संचल लवण 1, सैंधव लवण 2, रोम का लवण 3, समुद्री नमक 4, पांसुक्षार 5 और काला लवण 6, ग्रहण करना वर्जित है। अग्नि पर पकाया गया तथा नींबू आदि में गलाया गया अचित्त नमक ही ग्रहण किया जाता है, शेष नहीं। धूवणे त्ति वमणे" य, वत्थीकम्म" विरेयणे । अंजणे दंतवणे य, गायब्भंग विभूसणे ।।७।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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