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________________ 278] [दशवैकालिक सूत्र निक्खम्ममाणाइ य बुद्धवयणे, निच्चं चित्तसमाहिओ हविज्जा। इत्थीण वसं ण यावि गच्छे, वंतं णो पडिआयइ जे स भिक्खू ।।1।। हिन्दी पद्यानुवाद गणधर की आज्ञा से मुनि बन, जिनवाणी में मुदित सदा। नारी के वश न चले साधक, सेवे न वान्त वह भिक्षु कहा।। अन्वयार्थ-आणाइ = तीर्थङ्कर की आज्ञा से। निक्खम्म = प्रव्रज्या ग्रहण करके। य = जो। बुद्धवयणे = भगवद वचनों में । निच्चं = सदा । चित्तसमाहिओ= स्वस्थ शान्त स्थिर मन । हविज्जा = होता है। याविजे = और भी जो । इत्थीण = स्त्रियों के । वसं = अधीन । ण गच्छे = नहीं होता । वंतं = त्यागे हुए भोगों को। णो पडिआयइ = फिर सेवन नहीं करता । स = वह । भिक्खू = सच्चा भिक्षु है। भावार्थ-भिक्षा से जीवन चलाने वाला कोई भी भिक्षु कहलाता है। किन्तु सच्चा भिक्षु वेश से नहीं, गुणों से पहचाना जाता है । इसके लिये शास्त्रकार कहते हैं कि जो वीतराग प्रभु की आज्ञा से दीक्षा ग्रहण करके जिन वचनों में सदा समाधियुक्त-स्वस्थ चित्त रहता है, जो स्त्रियों के मोहाधीन नहीं होता और त्यागे हुए धन, धान्य एवं भोगों को फिर ग्रहण करना नहीं चाहता, वह भाव भिक्षु है। सूत्रकृतांग सूत्र के सोलहवें अध्ययन के अनुसार-जो अहंकार रहित, अदीन, शामक और दान्त होता है, व्युत्सृष्टकाय, स्थितात्मा, उपस्थित, परदत्तभोजी, अध्यात्म योग से संयम को शुद्ध रखने वाला होता है, वह भिक्षु है। पुढविं न खणे न खणावए, सीओदगं न पीए न पिआवए। अगणिसत्थं जहा सुणिसियं, तं न जले न जलावए जे स भिक्खू।।2।। हिन्दी पद्यानुवाद खोदे न भूमि ना खुदवाए, शीतल जल पिए न पिलवाए। ना तीक्ष्ण शस्त्र-पावक जारे, न जलवाए भिक्षु कहा जाए।। अन्वयार्थ-जे = जो । पुढविं = सचित्त पृथ्वी को । न खणे = खोदता नहीं। न खणावए = खुदवाता नहीं । सीओदगं = ठण्डा जल । न पीए (पिए) न पिआवए (पियावए) = पीता नहीं, पिलाता नहीं। सत्थं जहा सुणिसियं = अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र की तरह । तं अगणि = अग्नि है उसको । न जले = जलाता नहीं। न जलावए = जलवाता नहीं। स = वह । भिक्खू = भिक्षु है। भावार्थ-जो पृथ्वी-भूमि को स्वयं खोदे नहीं, खुदवाये नहीं; कूप, तालाब, नदी और नल आदि से सचित्त पानी को पीता नहीं, पिलाता नहीं; सुतीक्ष्ण शस्त्र के समान कोयला, बिजली एवं गैस आदि की अग्नि को जो जलावे नहीं और जलवाता नहीं, वह भिक्षु है। करने, करवाने की तरह पृथ्वी आदि के आरम्भ का
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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