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________________ दसवाँ अध्ययन स भिक्खू (भिक्षुक) उपक्रम इस दसवें अध्ययन में 'स भिक्ख' शीर्षक से भिक्षुक का विशद वर्णन किया गया है कि वास्तव में भिक्षु किसे कहा जाय, उसके क्या-क्या लक्षण होने चाहिये एवं उसमें कौन-कौन से गुण होने चाहिये, जिनके सद्भाव से वह लोकपूज्य बन सकता है और मुक्ति का सहज ही अधिकारी हो सकता है, जिनके अभाव में वह केवल भेषधारी भिखारी मात्र बनकर रह जाता है । भिक्षु वेष से नहीं गुणों से पूजनीय बनता है। इस तरह लिंगभिक्षु और भाव-भिक्षु का भी यहाँ अन्तर दर्शाया गया है। जैन दर्शन की दृष्टि से इस अध्ययन में भिक्षु का बड़ा विशद, रोचक, हृदय आह्लादकारी एवं अन्तरतम को छूने वाला विस्तृत वर्णन मिलता है, जो अन्यत्र, अन्य दर्शनों में मिलना दुर्लभ है। इस अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया है कि आदर्श भिक्षु के श्रेष्ठ एवं उदात्त गुणों के अभाव में गृहस्थ के घर से केवल मात्र भिक्षा माँगकर अपनी उदरपूर्ति करने वाला मात्र वेषधारी है। वास्तव में वह भिक्षु कहलाने योग्य नहीं है, अपितु उसे तो मात्र भिखारी कहा जाना अधिक उपयुक्त है। वास्तविक भिक्षु तो वह है जो इस आगम-ग्रन्थ के पिछले नौ अध्ययनों में तथा इस अध्ययन में भी वर्णित सर्वोत्कृष्ट आचार-विचार का पूर्णतया निष्ठापूर्वक पालन करता है। मात्र भेषधारी भिखारी एवं वास्तविक सच्चे भाव-भिक्षु की यह भेद रेखा जानने योग्य, अत्यन्त मननीय एवं आचरणीय है। उत्तराध्ययन-सूत्र के पन्द्रहवें अध्ययन में भी ऐसा ही वर्णन मिलता है, उस अध्ययन का शीर्षक भी 'स भिक्खू' ही है। यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि इस समस्त दशवैकालिक सूत्र का सार इस अध्ययन में समाविष्ट कर दिया गया है। इस दृष्टि से यह अध्ययन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें भिक्षु के गुणों का, उसके लक्षणों का एवं उसके सम्पूर्ण आचार-विचार का एक ही स्थान पर बड़े विस्तार से एवं अति स्पष्ट रूप से विशद वर्णन किया गया है।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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