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________________ (तृतीय अध्ययन खुड्डियायारकहा (क्षुल्लकाचार कथा) संजमे सुट्टिअप्पाणं, विप्पमुक्काण ताईणं । तेसिमे यमणाइण्णं, निग्गंथाण महेसिणं ।।1।। हिन्दी पद्यानुवाद संयम में स्थित आतम वाले, संयोग मुक्त और त्रायी के। उनके हैं इतने अनाचीर्ण, परमर्षि तथा निर्ग्रन्थों के ।। अन्वयार्थ-संजमे = संयम में । सुट्ठि-अप्पाणं = सुस्थित आत्मा वाले। विप्पमुक्काण = बाह्य एवं आभ्यन्तर परिग्रह से मुक्त । ताइणं = षट्काय जीवों के रक्षक । तेसिं = उन । निग्गंथाण महेसिणं = निर्ग्रन्थ महर्षियों के । एयं = ये आगे कहे जाने वाले कार्य । अणाइण्णं = अनाचीर्ण हैं। नहीं करने योग्य हैं। भावार्थ-जो संयम धर्म में स्थिर, परिग्रह से मुक्त और षट्कायिक जीवों के रक्षक हैं, उन निर्ग्रन्थ महर्षियों के लिये वे कार्य आचरण में निषिद्ध माने गये हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है उद्देसियं' कीयगडं', नियागमभिहडाणि-4 य । राइभत्ते सिणाणे य, गंधमल्ले- य वीअणे ।।2।। हिन्दी पद्यानुवाद औद्देशिक कृतक्रीत नियाग-अभ्याहृत एवं रात्रि अशन । स्नान गंध माला धारण, सुख हेतु व्यजन का संचालन ।। अन्वयार्थ-उद्देसियं = साधु को देने के उद्देश्य से बनाया गया आहार । कीयगडं = साधु के लिए खरीद कर दिया गया अशन, वसनादि । नियागं = आमंत्रणपूर्वक नित्य दिया गया आहारादि । अभिहडाणि = सामने लाकर दिया गया आहारादि । य = और । राइभत्ते = रात्रि भोजन । सिणाणे = स्नान करना । य = और । गंध = सुगन्धित पदार्थ केसर, चन्दनादि का लेप करना । मल्ले = फूल माला आदि धारण करना। य = और । वीअणे (वीयणे) = पंखे आदि से हवा करना।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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