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________________ आठवाँ अध्ययन [233 जहा कुक्कुडपोयस्स, णिच्चं कुललओ भयं । एवं खु बंभयारिस्स, इत्थी-विग्गहओ भयं ।।54।। हिन्दी पद्यानुवाद जैसे मुर्गी के शावक को, रहता विडाल का हरदम भय । वैसे ही ब्रह्मव्रती मुनि को, नारी शरीर से प्रतिक्षण भय ।। अन्वयार्थ-जहा = जैसे । कुक्कुड पोयस्स = मुर्गी के नन्हे बच्चे को। णिच्चं = सदा । कुललओ भयं = विडाल (बिल्ली) का भय रहता है। एवं खु = इसी तरह । बंभयारिस्स = ब्रह्मचारी को । इत्थीविग्गहओ = स्त्री के शरीर से । भयं = भय होना चाहिये। भावार्थ-मुर्गी या कबूतर के बच्चे को विडाल यानी बिल्ली से सदा भय रहता है। वे बच्चे बिल्ली के पास नहीं जाते, क्योंकि पक्षी के बच्चे को बिल्ली से मृत्यु का खतरा होता है। वैसे ही ब्रह्मचारी स्त्री के सुन्दर तन से डरता रहे। इसका अर्थ यह है कि साधु स्त्री के अंगोपाङ्ग को राग की दृष्टि से नहीं देखे-कभी नजर चली भी जाय, तो संयमभाव की हानि के डर से तत्काल दृष्टि हटा ले। इससे उसका ब्रह्मव्रत निर्मल रहेगा, वह कामना का शिकार नहीं होगा। चित्तभित्तिं न णिज्झाए, नारिं वा सुअलंकियं । भक्खरं पि व दळूणं, दिद्रिं पडिसमाहारे ।।55।। हिन्दी पद्यानुवाद भित्ति-चित्र भी ना देखे, या आभूषण भूषित नारी को। आँख मींच ले देख मिचे ज्यों, सहस्र किरण के सूरज को।। अन्वयार्थ-चित्तभित्तिं = स्त्री के चित्रवाली भींत को। वा = अथवा । सुअलंकियं = वस्त्र आभूषणों से अलंकृत । नारिं = नारी को भी। न निज्झाए = टकटकी लगा कर नहीं देखे, कदाचित् उधर दृष्टि पड़ जाय तो। पि व = जैसे । भक्खरं = मध्याह्न के सूर्य को । दळूणं = देखकर । दिष्टुिं = तत्काल दृष्टि को । पडिसमाहरे = लोग खींच लेते हैं, वैसे ही साधु अपनी दृष्टि उधर से तत्काल खींच ले। भावार्थ-अनादि काल से आत्मा के पीछे मोहकर्म लगा है, जो नाम मात्र का निमित्त पाकर ही प्रगट हो जाता है। वैराग्य जगाने के लिये तो कई बार उपदेश सुनाने की आवश्यकता होती है। पर राग उत्पन्न करने के लिये उपदेश की आवश्यकता भी नहीं पड़ती। वह अनायास उत्पन्न होता है। चित्र में स्त्री रूप को अथवा अलंकार युक्त नारी को देखकर कामराग जगने की सम्भावना को देखकर, शास्त्रकार ने कहा है कि मध्याह्न के सूर्य को देखकर जैसे उधर से तत्काल दृष्टि हटा ली जाती है, वैसे ही स्त्री पर दृष्टि पड़ते ही साधु तत्काल अपनी दृष्टि उधर से खींच ले ।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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