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________________ आठवाँ अध्ययन] [221 अन्वयार्थ-बाहिरं = अपने से भिन्न दूसरे का । परिभवे = अनादर । न = नहीं करे । अत्ताणं = अपना । समुक्कसे = उत्कर्ष-ऊँचापन । न = नहीं दिखावे । सुअ (सुय) = श्रुतज्ञान एवं । जच्चा तवस्सि बुद्धिए = उच्चजाति, तपस्या और बुद्धि के । लाभे = लाभ का । न मज्जिज्जा = मद नहीं करे । भावार्थ-मुनि दूसरों का तिरस्कार अथवा अनादर नहीं करे । अर्थात् कुल, बल, रूप, तप, बुद्धि, जाति एवं ऐश्वर्य आदि का किसी भी प्रकार का मद मुनि न करे। अपनी बड़ाई नहीं करे । श्रुतज्ञान का बल पाकर मेरे समान शास्त्रज्ञ कौन है ऐसा मान नहीं करे। इसी प्रकार मेरे समान लब्धिमान, उच्च जातिमान्, तपस्या और बुद्धि में मेरे समान कौन है, ऐसा गर्व नहीं करे । गर्व करने से नीच गोत्र कर्म का बन्ध होता है। अत: साधु को किसी प्रकार का मद नहीं करना चाहिये। से जाणमजाणं वा, कट्ट आहम्मियं पयं । संवरे खिप्पमप्पाणं, बीयं तं न समायरे ।।31।। हिन्दी पद्यानुवाद जाने या अनजाने में, यदि धर्म हीन मुनि कर्म करे। ले उससे निज को शीघ्र हटा, ना दुहराकर वह कर्म करे ।। अन्वयार्थ-से = वह साधु । जाणं = जानपन से । वा अजाणं = अथवा अजानपन से । आहम्मियं = कोई धर्म विरुद्ध । पयं = कार्य । कटु = कर बैठे तो वैसा करके । खिप्पं = शीघ्र ही। अप्पाणं = अपनी आत्मा को पाप से । संवरे = दूर कर ले । तं = उस पर । बीयं = दूसरी बार । न समायरे = आचरण नहीं करे। ___ भावार्थ-साधु शुद्धिप्रिय होता है । वह दोषों से सदा दूर रहना चाहता है । इसलिये कभी जानते हुए या अनजान स्थिति में कोई धर्म विरुद्ध कार्य उससे हो जाय तो वह तत्काल अपने आपको दोष से दूर कर लेता है और दूसरी बार वैसे दोष का सेवन नहीं करता है । शुद्धि करने का प्रकार बतलाते हैं अणायारं परक्कम्म, नेव गृहे न णिण्हवे । सुई सया वियडभावे, असंसत्ते जिइंदिए ।।32।। हिन्दी पद्यानुवाद अनाचार का सेवन कर, नहीं गोपे न अस्वीकार करे। निर्मल सरल मन दोष रहित, मुनि दान्तगुणी होकर विचरे ।। अन्वयार्थ-अणायारं = अनाचार-धर्म विरुद्ध कार्य का । परक्कम्म = कभी सेवन हो जाये तो। न एव गूहे = उसे गुरु के पास अधूरा कहकर न छिपावे । न णिण्हवे = न असली बात को अस्वीकार करे यानी अपने अनाचार को स्पष्ट रूप से सरल मन से स्वीकार कर ले । सया = सदा । सुई = निर्मल मति
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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