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________________ 220] [दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद सूर्य डूबने के पीछे या, उदयकाल से पूर्व कहीं। आहार आदि सब कुछ मन से, लेने की इच्छा करे नहीं।। अन्वयार्थ-आइच्चे = सूर्य के । अत्थंगयम्मि = अस्त हो जाने पर । य = और । पुरत्था = पूर्व दिशा से । अणुग्गए = उदित नहीं होने तक । आहारमाइयं = अशन-पान खाद्य-स्वाद्य आदि । सव्वं = सब प्रकार का आहार साधु । मणसा = मन से । वि न = भी नहीं। पत्थए = चाहे। भावार्थ-साधु सूर्य अस्त होने पर और प्रात:काल पूर्व दिशा में सूर्य का उदय न हो जाय तब तक अशन पान आदि सब प्रकार के आहार का सेवन करना तो दूर की बात है, किन्तु मन से ग्रहण करने की भी इच्छा नहीं करे। अतिंतिणे अचवले, अप्पभासी मियासणे । हविज्ज उअरे दंते, थोवं लधुं न खिसए ।।29।। हिन्दी पद्यानुवाद अतिंतिण अचपल, मितभाषी, अल्पाशी जो हैं जहाँ श्रमण । जो उदर दमन करने वाले, पा थोड़ा क्रोध न लाये मन ।। अन्वयार्थ-अतिंतिणे = साधु अरस या अल्प आहार मिलने पर तुनतुन यानी प्रलाप नहीं करता। अचवले = चंचलता रहित । अप्पभासी = अल्प भाषी और । मियासणे = मितभोजी । उअरे = आहार की इच्छा का । दंते = दमन करने वाला । हविज्ज = होता है। थोवं = वह साधु थोड़ा । लधु = प्राप्त होने पर । न खिसए = गृहस्थ की निंदा भी नहीं करता। भावार्थ-भिक्षार्थ गृहस्थ के घर गया हुआ साधु, इच्छित आहार नहीं मिलने पर या अल्प मिलने पर प्रलाप (तुन तुन) नहीं करता। चपलता रहित, आवश्यकतानुसार अल्पभाषी, परिमित भोजी और उदर के सम्बन्ध में यथा लाभ सन्तुष्ट रहने वाला होता है। थोड़ा पाकर भी गृहस्थ की निंदा नहीं करता। ‘तवोत्ति अहियासए' इस शास्त्र वचन के अनुसार उसे तप समझकर शान्त मन से सहन करता है। न बाहिरं परिभवे, अत्ताणं न समुक्कसे । सुअलाभे न मज्जिज्जा, जच्चा तवस्सि बुद्धिए ।।30।। हिन्दी पद्यानुवाद मुनि करे न पर का तिरस्कार, और आत्म-प्रशंसा करे नहीं। श्रुतलाभ जाति से या तप से, अथवा मति से मद करे नहीं।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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