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________________ 216] [दशवैकालिक सूत्र आवाज से मुर्गे ने बीट कर दी। बीट में स्वर्णमय जौ ज्यों के त्यों निकल आये। स्वर्णकार जो चिन्तित था, उन जौ को देखकर घबराया और पश्चात्ताप करने लगा-अहो ! मैंने एक निरपराध मुनि को कठोर पीड़ा देकर बड़ा भारी अपराध किया है। उसने शीघ्र जाकर मुनि के सिर से चमड़ा हटाया पर तब तक तो मुनि का प्राणांत हो चुका था । इस तरह मुनि ने प्राण देकर भी देखी हुई घटना मुर्गे की दया के लिये नहीं बताई। सुयं वा जइ वा दिटुं, न लविज्जोवघाइयं । न य केण उवाएण, गिहिजोगं समायरे ।।21।। हिन्दी पद्यानुवाद सुनी हुई अथवा देखी, पर-पीड़क जो बात कहीं। ना कहे किसी युक्तिबल से भी, आचरण गृहस्थ सम करे नहीं ।। अन्वयार्थ-सुयं वा = सुनी हुई अथवा । जइ वा दिटुं = देखी हुई अथवा । उवघाइयं = जो पीड़ाकारी हो । न लविज्ज = वैसी भाषा साधु नहीं बोले । य केण उवाएण = और किसी भी उपाय से । गिहिजोगं = गृहस्थ योग्य कर्म का । न समायरे = आचरण नहीं करे। भावार्थ-साधु गृहस्थ के यहाँ देखी और सुनी हुई घटनाओं में से जो पर पीड़ा कारक हो, किसी को कुछ नहीं बतावे । किसी भी उपाय से, शादी-विवाह, व्यापार जैसा गृहस्थोचित कर्म का आचरण नहीं करे । निट्ठाणं रसणिज्जूढं, भद्दगं पावगं ति वा। पुट्ठो वा वि अपुट्ठो वा, लाभालाभं न निद्दिसे ।।22।। हिन्दी पद्यानुवाद शोभन सरस विरस अथवा, भिक्षान्न अरुचिकर हों जैसे। पूछे तथा बिना पूछे, ना कहे अलाभ लाभ वैसे ।। अन्वयार्थ-निट्ठाणं = चटनी मसाला युक्त मिष्टान्न भोजन का । रसणिज्जूढं = जिससे रस निकल गया हो वैसे भोजन का । भद्दगंवा = सरस अथवा । पावगं ति = विरस । पुट्ठो वा वि = पूछने पर अथवा । अपुट्ठो = बिना पूछे । लाभालाभं = लाभ-अच्छा मिला अथवा कुछ नहीं मिला । न निद्दिसे = इस प्रकार का कोई कथन नहीं करे। भावार्थ-भिक्षार्थ गया हुआ साधु भिक्षा में सरस मिले अथवा नीरस, अच्छा हो या बुरा, किन्तु साधु पूछने पर अथवा बिना पूछे लाभ हुआ या नहीं हुआ, इस प्रकार गृहस्थ की हल्की लगे वैसी बात नहीं कहे । क्योंकि संयमी मुनि-लाभालाभ में सन्तुष्ट होता है।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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