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________________ 192] [दशवैकालिक सूत्र तहा फलाई पक्काइं, पायखज्जाइं णो वए। वेलोइयाई टालाई, वेहिमाइ त्ति णो वए ।।32।। हिन्दी पद्यानुवाद वैसे ये स्वयं पके हैं फल, ना कहे खाद्य होंगे पककर । हैं तत्क्षण खाद्य योग्य कोमल, या दो भागों में कटने पर ।। अन्वयार्थ-तहा = वृक्षों की तरह । फलाई = ये फल । पक्काई = अच्छे पके। पायखज्जाई = पका कर खाने लायक हैं। णो वए = इस प्रकार की सावध भाषा नहीं बोले । वेलोडयाई = अविलम्ब तोड़ने योग्य हैं। टालाई = कोमल हैं। वेहिमाइ त्ति = चाकू से काटकर खाने योग्य हैं इस प्रकार । नो वए = साधु नहीं बोले। भावार्थ-वैसे ही फलों के विषय में कभी बोलने का प्रसंग आवे तो ये फल अच्छे पके हैं, पकाकर खाने योग्य हैं, मौसम के अनुकूल हैं, गुठली नहीं आने से कोमल हैं, दो टुकड़े कर के खाने योग्य हैं, इस प्रकार का कथन आरम्भजनक है और आहार संज्ञा उत्पन्न करने वाला है, इसलिये मुनि ऐसा कथन नहीं करे। न ऐसी भाषा ही बोले। असंथडा इमे अंबा, बहुनिवट्टिमा' फला। वएज्ज बहुसंभूया, भूयरूवत्ति वा पुणो।।33।। हिन्दी पद्यानुवाद बहु फल वाले ये आम्र विटप, असमर्थ भार ढ़ाने में हैं। फल चुके तथा फल लगने से, अतिशय सुन्दरता इनमें हैं।। अन्वयार्थ-इमे = ये । अंबा = आम वृक्ष । असंथडा = फल के भार धारण करने में असमर्थ हैं। बहुनिवट्टिमा फला = बहुत से फलों के गुच्छों से युक्त । बहुसंभूया = एक साथ अधिक फल लगे हैं। वा = अथवा । पुणो = पुनः । भूयरूवत्ति = कोमल हैं । वएज्ज = इस प्रकार बोले। भावार्थ-फलों के सम्बन्ध में कभी कहना पड़े तो साधु इस प्रकार बोले-ये आम्र वृक्ष फल धारण करने में असमर्थ हैं, बहुत से फलों के गुच्छों से युक्त हैं, एक साथ बहुत फल उत्पन्न हुए हैं, गुठली नहीं पड़ने से कोमल हैं। इस प्रकार कारण होने पर बोले। तहेवोसहिओ पक्काओ, नीलियाओ छवीइ य। लाइमा भज्जिमाओत्ति', पिहुखज्जत्ति णो वए।।34।। 1. बहुनिव्वडिमा - पाठान्तर। 2. भूअरूवित्ति - पाठान्तर।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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