SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सातवाँ अध्ययन] [191 ___भावार्थ-जंगल के वृक्षों को देखकर साधु यह कहे कि ये वृक्ष उपाश्रय के लिये छोटा पाट, सोने का बड़ा पाट, यान, कपाट आदि के लिये उपयोगी होगा तो इसे भगवन्तों ने हिंसाकारी भाषा बताया है। ऐसी हिंसा कारक भाषा बुद्धिमान् को कभी नहीं बोलनी चाहिये । साधु उपाश्रय के निर्माण कार्य से भी उपरत होता है, इसलिये उसके लिये इस सम्बन्ध में तटस्थ रहना ही अच्छा है। तहेव गंतुमुज्जाणं, पव्वयाणि वणाणि य । रुक्खा -महल्ल-पेहाए, एवं भासिज्ज पण्णवं ।।30।। हिन्दी पद्यानुवाद प्राज्ञ-साधु विचरण करते, जाकर उद्यान शैल वन में। उन बड़े विटप को देख-देख, कह सकते ऐसे जन जन में।। अन्वयार्थ-तहेव = वैसे ही। उज्जाणं = उद्यान । पव्वयाणि = पर्वत । य = और । वणाणि = वनों में । गंतुं = जाकर । रुक्खामहल्ल = बड़े-बड़े वृक्षों को । पेहाए = देखकर । पण्णवं = बुद्धिमान् साधु । एवं = इस प्रकार । भासिज्ज = बोले। भावार्थ-जंगल में विचरण करते हुए कभी मुनि को उद्यान, पर्वत और वन प्रदेशों के प्राकृतिक रमणीय दृश्यों को एवं बड़े-बड़े वृक्षों को देखकर आवश्यकता वश उनका परिचय देना पड़े तो बुद्धिमान् ऐसी निर्दोष भाषा में बोले, जैसा कि आगे की गाथा में बताया जा रहा है। जाइमंता इमे रुक्खा, दीहवट्टा महालया। पयायसाला विडिमा, वए दरिसणित्ति य ।।31।। हिन्दी पद्यानुवाद ये उच्च जाति वाले तरु हैं, लम्बे और गोल तथा विस्तृत । परिपूर्ण प्रशाखा शाखा से, यों बोले विटप सुघड़ सज्जित ।। अन्वयार्थ-इमे = ये । रुक्खा = वृक्ष । जाइमंता = अच्छी जाति वाले हैं। दीहवट्टा = लम्बे वर्तुलाकार हैं। महालया = विस्तार वाले हैं। पयायसाला = शाखाएँ खूब फैली हुई हैं। विडिमा = प्रतिशाखा वाले हैं। य = और । दरिसणित्ति = दर्शनीय हैं । वए = ऐसा बोले। भावार्थ-ये वृक्ष अच्छी जाति वाले हैं, लम्बे वर्तुलाकार हैं, बहुत विस्तार वाले हैं, इनकी शाखा और प्रतिशाखाएँ भी बहुत फैली हुई हैं, इसलिये ये दर्शनीय हैं । संयमी साधु इसके अतिरिक्त उनके सम्बन्ध में कोई अन्य सावद्यादि वचन नहीं बोले।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy