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________________ प्रथम अध्ययन पर टिप्पणी धर्म शब्द की विस्तृत व्याख्या - गाथा 1 धम्मो - (धर्म) शब्द का अर्थ है-धारण करना । नियुक्तिकार ने कहा है-'दव्वस्स पज्जवा से' द्रव्य को धारण करने वाली जो अवस्थाएँ हैं 'ते धम्मा तस्स दव्वस्स' वे उस द्रव्य के धर्म हैं। फिर 'वत्थुसहावो धम्मो' - वस्तु के स्वभाव को भी धर्म कहा है। स्थानांग सूत्र के अनुसार धर्म के दस प्रकार होते हैं। जैसे-गाम धम्मे 1, नगर धम्मे 2, कुल धम्मे 3, गण धम्मे 4, संघ धम्मे 5, पासंड धम्मे 6, र? धम्मे 7, सुय धम्मे 8, चरित्त धम्मे 9, अत्थिकाय धम्मे 10 (स्थानांग 10) अर्थात् ग्राम-धर्म 1, नगर-धर्म 2, कुल-धर्म 3, गण-धर्म 4, संघ-धर्म 5, पाखंड-धर्म 6, राष्ट्र-धर्म 7, श्रुतधर्म 8, चारित्र-धर्म 9, अस्तिकाय-धर्म 10। यहाँ ग्राम आदि की व्यवस्था को धर्म कहा है। ऊपर कथित ग्राम-धर्म आदि सावध हैं, अत: लौकिक धर्मों को ग्राह्य नहीं माना जाता । जैसा कि नियुक्तिकार ने कहा है धम्मत्थिकायधम्मो, पयारधम्मो य विसयो धम्मो य। लोइय कुप्पावयणि, अलोगुत्तर लोग अणेगविहो ।।४१ ।। गम्मसुदेसरज्जे, पुरगाम गणगो ट्ठिराइणं । सावज्जो कुतित्थिय धम्मो, न जिणेहिं उ पसत्थो ।।४२ ।। अर्थात् धर्मास्तिकाय-धर्म, प्रचार-धर्म आदि आरम्भ युक्त होने से सावध हैं। कुप्रावचनिक-धर्म भी सावद्यप्राय: है, अत: वे कल्याणकारी नहीं होते । कल्याणकारी धर्म की व्याख्या इस प्रकार है दुर्गति-प्रसृतान् जीवान्, यस्माद् धारयते ततः । धत्ते चैतान् शुभे स्थाने, तस्माद् धर्म इति स्थितः ।। अर्थात् दुर्गति में गिरते हुए जीवों को जिसके द्वारा शुभ स्थान में पहुँचाया जाता है, उसे धर्म कहते हैं। इसी बात को नियुक्तिकार ने कहा है-'धम्मो गुणा अहिंसाइया उ ते परिमंगल पइन्ना' (नि.गा. 89) ।। संक्षेप में धर्म के लिए इस प्रकार कहा गया है धम्मो वत्थु-सहावो, खमादिभावा यो दसविहो धम्मो। रयणं तयं च धम्मो, जीवाण रक्खण-धम्मो ।। (समा०)।। धर्म से आचार और विचार की मलिनता दूर की जाती है। वह दस प्रकार से कहा गया है। खंती मुत्ती अज्जवे मद्दवे लाघवे सच्चे संजमे तवे चियाए बंभचेरवासे । (ठा. 10/15)।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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