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________________ 130] [दशवैकालिक सूत्र भावार्थ-मूंग आदि की कच्ची फली जो एक बार आग पर भुंजी गई हो साधु ग्रहण नहीं करे । देने वाले को मना कर दे। तहा कोलमणुस्सिण्णं, वेलुयं कासवणालियं । तिल-पप्पडगं णीमं, आमगं परिवज्जए ।।21।। हिन्दी पद्यानुवाद वैसे बिना उबाले जो है, बेर केर श्रीपर्णी फल । हो सचित्त तो साधु छोड़ दे, तिल पपड़ी या नीम का फल ।। अन्वयार्थ-तहा = वैसे फली की तरह । कोलमणुस्सिण्णं = बिना उबाला बेर । वेलुयं = वंश करेला । कासवणालियं = (काश्यपनालिका) श्रीपर्णी का फल । तिल-पप्पडगं = तिल पपड़ी। णीमं = नीम की निम्बोली या कदम्बफल । आमगं = कच्चा। परिवज्जए = ग्रहण नहीं करे। भावार्थ-फली की तरह बिना उबाले बेर आदि फल भी कच्चे हों तो साध उनका वर्जन कर दे। तहेव चाउलं पिटुं, वियडं वा तत्तऽणिव्वुडं। तिलपिट्ठ-पूपिण्णागं, आमगं परिवज्जए ।।22।। हिन्दी पद्यानुवाद वैसे चावल का आटा, कुछ गर्म किया ठण्डा पानी। तिलकुट्टा एवं सरसों-खल, त्यागे सचित्त मुनि सुज्ञानी ।। अन्वयार्थ-तहेव = इसी प्रकार । चाउलं = चावल आदि का । पिटुं = तत्काल का पिसा आटा । वा = या। वियर्ड = गरम जल । तत्तऽणिव्वुडं = जो पूरा गर्म नहीं हुआ है। तिलपिट्ठ = तिल का पिष्ट । पूपिण्णागं = पोय और सरसों की खली। आमगं = ये सब कच्चे हों तो। परिवज्जए = इनका वर्जन करे। भावार्थ-साधु चावल अथवा गेहूँ का तत्काल पिसा हुआ आटा और तिल का कूटा, बराबर नहीं उबला हो वैसा पानी और सरसों की खली कच्ची, सचित्त हो तो उन्हें छोड़ दे। कविट्ठ माउलिंगं च, मूलगं मूलगत्तियं । आमं असत्थपरिणयं, मणसा वि ण पत्थए ।।23।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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