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________________ पाँचवाँ अध्ययन] [129 हिन्दी पद्यानुवाद कमल ढाक का मूल कुमुद या, कमल तन्तु या नाल कमल। सरसों भाजी इक्षु खण्ड, जिन पर न हुआ है शस्त्र चलन ।। अन्वयार्थ-सालुयं = कमल का मूल । विरालियं = विराली कंद । वा = अथवा । कुमुयं = कुमुद । उप्पलणालियं = उत्पल नालिका । मुणालियं = मृणालिका कमल तन्तु । सासवणालियं = सरसों की भाजी । उच्छुखंडं = इक्षुखण्ड । अणिव्वुडं = अशस्त्र परिणत यानी कच्चा हो। भावार्थ-साधु वनस्पति की हिंसा से बचने के लिये कमल का मूल, विराली कंद, चन्द्र विकासी कमल, कमल की नाल, कमल का तन्तु और सरसों की भाजी एवं गाँठ वाला इक्षु का खण्ड न ले तथा बिना गाँठ वाले में भी सार भाग कम, खल भाग अधिक होने से न ले। तरुणगं वा पवालं, रुक्खस्स तणगस्स वा। अण्णस्स वा वि हरियस्स, आमगं परिवज्जए।।19।। हिन्दी पद्यानुवाद हो इमली तरु के या तृण के, तरुण पत्र वा कोंपल-दल। अन्य हरित भी हो सचित्त तो, छोड़े साधु उन्हें उस पल ।। अन्वयार्थ-रुक्खस्स = वृक्ष । वा = या। तणगस्स = तृण के। तरुणगं वा = पत्ते अथवा। पवालं वा = कोंपलें तथा । अण्णस्स वि = अन्य भी। हरियस्स = हरित के पत्ते आदि । आमगं = कच्चे हों तो । परिवज्जए = साधु वर्जन करे। भावार्थ-साधु वृक्ष, तृण या अन्य किसी वनस्पति के पत्ते अथवा कोंपलों को ग्रहण नहीं करें। तरुणियं वा छिवाडिं, आमियं भज्जियं सई। दितियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पइ तारिसं ।।20।। हिन्दी पद्यानुवाद भुंजी हुई हो एक बार या कच्ची, फली लगे गृही देने को। भिक्षा दात्री से मुनि बोले, वैसा कल्पे नहीं लेने को ।। अन्वयार्थ-तरुणियं = जिसमें बीज पके नहीं हो। छिवाडि = वैसी मूंग आदि की फली। आमियं = कच्ची हो । वा सई = अथवा एक बार । भज्जियं = भुंजी हुई हो। दितियं = देने वाली से साधु । पडियाइक्खे = निषेध करते हुए कहे कि । मे = मुझको । तारिसं = वैसा आहार । ण कप्पइ = नहीं कल्पता है।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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