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________________ पाँचवाँ अध्ययन] [101 = अग्राह्य । भवे = होता है, साधु । दिंतियं = देने वाली से। पडियाइक्खे = निषेधात्मक भाषा में कहे I T कि । तारिसं = वैसा आहार लेना। मे = मुझको। ण कप्पड़ = नहीं कल्पता है । भावार्थ-वह आहार-पानी साधुओं के लिये अग्राह्य है । अत: साधु देने वाली से निषेध करते हुए कहे कि वैसा आहार लेना मुझको नहीं कल्पता है। हिन्दी पद्यानुवाद असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा । सुवा, समणट्ठा पगडं इमं ॥53॥ अशन पान खादिम या स्वादिम, श्रमणों के हित कल्पित है। मुनि जाने अथवा सुन ले तो, बन जाता वह वर्जित है । अन्वयार्थ-असणं = अशन । पाणगं = पानक । वा = अथवा । खाइमं वि = खाद्य भी। तहा = तथा । साइमं = स्वादिम । जं = जो, साधु ऐसा । जाणिज्ज = जाने । वा = अथवा । सुणिज्जा = सुन ले कि । इमं = यह पदार्थ | समणट्ठा = शाक्यादि भिक्षुओं के लिये । पगडं = बनाया गया है। भावार्थ-जो अशन, पानक, खाद्य - मेवा, या स्वाद्य आदि पदार्थ बौद्ध मतावलम्बी या अन्य भिक्षुओं अथवा साधुओं के लिये बनाया गया है, ऐसा जाने अथवा सुने तो.........। हिन्दी पद्यानुवाद तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दिंतियं पडियाइक्खे, ण मे कप्पड़ तारिसं ||54|| फिर तो वह अशनादि साधुओं, के हित होता कल्प्य नहीं । दात्री को बोले तब मुनियों, मेरे हित यह ग्राह्य नहीं ।। । अन्वयार्थ-तं = वह । भत्तपाणं तु = आहार- पानी तो । संजयाण = साधुओं के लिये । अकप्पियं = अग्राह्य । भवे = होता है, साधु । दिंतियं = देने वाली से । पडियाइक्खे = निषेध पूर्वक कहे कि । मे मुझको । तारिसं = वैसा आहार लेना । ण कप्पड़ = नहीं कल्पता है । = भावार्थ-वह आहार-पानी साधुओं के लिये अग्राह्य है, अत: साधु देने वाली से निषेध करते हुए कहे “वैसा आहार मुझको लेना कल्पता नहीं है।” उद्देसियं कीयगडं, पूइकम्मं च आहडं । अज्झोयर पामिच्चं, मीसजायं विवज्जए 115511
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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