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________________ तृतीय वर्ग - आठवाँ अध्ययन ] 71} वे प्रविष्ट हुए जिससे उन गजसुकुमाल अणगार को अनंत-अन्तरहित, अनुत्तर यावत् सर्वश्रेष्ठ निर्व्याघात निरावरण एवं सम्पूर्ण केवल ज्ञान एवं केवलदर्शन की उपलब्धि हुई और तत्पश्चात् आयुष्य पूर्ण हो जाने पर वे उसी समय सिद्ध बुद्ध यावत् सब दुःखों से मुक्त हो गये। इस तरह सकल कर्मों के क्षय हो जाने से वे गजसुकुमाल अणगार कृतकृत्य बनकर 'सिद्ध' पद को प्राप्त हुए, लोकालोक के सभी पदार्थों के छूट जाने से परिनिवृत्त यानी शीतलीभूत हुए एवं शारीरिक और मानसिक सभी दु:खों से रहित होने से सर्व दु:ख प्रहीण' हुए अर्थात् वे गजसुकुमाल अणगार मोक्ष को प्राप्त हुए। उस समय वहाँ समीपवर्ती देवों ने-“अहो! इन गजसुकुमाल मुनि ने श्रमण चारित्रधर्म की अत्यन्त उत्कृष्ट आराधना की है" यह जानकर अपनी वैक्रिय शक्ति के द्वारा दिव्य सुगन्धित अचित्त जल की तथा पाँच वर्गों के दिव्य अचित्त फूलों एवं वस्त्रों की वर्षा की और दिव्य मधुर गीतों तथा गन्धर्व वाद्ययन्त्रों की ध्वनि से आकाश को गुंजा दिया। सूत्र 24 मूल- तए णं से कण्हे वासुदेवे कल्लं पाउप्पभायाए जाव-जलते ण्हाए जाव विभूसिए, हत्थिक्खंधवरगए, सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धवमाणीहिं महया भडचउगरपहकरवंद परिक्खित्ते बारवई नयरी मज्झमज्झेणं जेणेव अरहा अरिठ्ठणेमी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तए णं से कण्हे वासुदेवे बारवईए नयरीए मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छमाणे एक्कं पुरिसं पासइ, जुण्णं जराजज्जरियदेहं जाव किलंतं महई महालयाओ इट्टगरासीओ एगमेगं इट्टगं गहाय बहिया रत्थापहाओ अंतो गिहं अणुप्पविसमाणं पासइ। तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स पुरिसस्स अणुकंपणट्ठाए, हथिक्खंध-वरगए चेव एग इट्टगं गिण्हइ, गिण्हित्ता बहिया रत्थापहाओ अंतोगिहं अणुप्पवेसेइ। तएणं कण्हेणं वासुदेवेणंएगाए इट्टगाए गहियाए समाणीए अणेगेहिं पुरिससएहिं से महालए इट्टगस्स रासी बहिया रत्थापहाओ अंतोघरंसि अणुप्पवेसिए। संस्कृत छाया- तत: खलु स: कृष्ण वासुदेव: कल्ये प्रादुर्भूतप्रभाते यावत् ज्वलति स्नात: यावत्
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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