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________________ { 66 [अंतगडदसासूत्र एगराइयं महापडिमं = एक रात्रि की महाप्रतिमा, उवसंपज्जित्ताणं विहरइ = अंगीकार करके ध्यान में खड़े रहे। भावार्थ-अब वह गजसुकुमाल अणगार हो गये। ईर्यासमिति वाले यावत् गुप्त ब्रह्मचारी बन गये । श्रमण धर्म में दीक्षित होने के पश्चात् वह गजसुकुमाल मुनि जिस दिन दीक्षित हुए, उसी दिन, दिन के पिछले भाग में जहाँ अरिहंत अरिष्टनेमि विराजमान थे, वहाँ आये । वहाँ आकर उन्होंने भगवान नेमिनाथ की तीन बार आदक्षिणा प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा करके वे इस प्रकार बोले-“हे भगवन् ! आपकी अनुज्ञा प्राप्त होने पर मैं महाकाल श्मशान में एक रात्रि महापडिमा (महाप्रतिमा) धारण कर विचरना चाहता हूँ।" प्रभु ने कहा-“हे देवानुप्रिय ! जिससे तुम्हें सुख प्राप्त हो वही करो।” तदनन्तर वह गजसुकुमाल मुनि अरिहंत अरिष्टनेमि की आज्ञा मिलने पर, भगवान नेमिनाथ को वन्दन-नमस्कार करते हैं। वंदननमस्कार कर, अहँत् अरिष्टनेमि के सान्निध्य से चलकर सहस्राम्र वन उद्यान से निकले । वहाँ से निकलकर जहाँ महाकाल श्मशान था, वहाँ आते हैं। महाकाल श्मशान में आकर प्रासुक स्थंडिल भूमि की प्रतिलेखना करते हैं। प्रतिलेखन करने के पश्चात् उच्चार-प्रस्रवण (मल-मूत्र त्याग) के योग्य भूमि का प्रतिलेखन करते हैं। प्रतिलेखन करने के पश्चात् एक स्थान पर खड़े हो अपनी देह यष्टि को किंचित् झुकाये हुए (एक पुद्गल पर दृष्टि जमाकर) दोनों पैरों को (चार अंगुल के अन्तर से) सिकोड़कर एक रात्रि की महाप्रतिमा अंगीकार कर ध्यान में मग्न हो जाते हैं। सूत्र 21 मूल- इमं च णं सोमिले माहणे सामिधेयस्स अट्ठाए बारवईओ नयरीओ बहिया, पुव्वणिग्गए समिहाओ य दब्भे य कुसे य पत्तामोडयं य गिण्हइ, गिण्हित्ता तओ पडिणियत्तइ। पडिणियत्तित्ता महाकालस्स सुसाणस्स अदूरसामंतेणं वीइवयमाणे संझाकालसमयंसि पविरलमणुस्संसि गयसुकुमालं अणगारं पासइ, पासित्ता तं वेरं सरइ सरित्ता आसुरुत्ते एवं वयासी-एस णं भो ! से गयसुकुमाले कुमारे अपत्थिय जाव परिवज्जिए, जे णं मम धूयं, सोमसिरीए भारियाए अत्तयं सोमं दारियं अदिट्ठदोसपइयं कालवत्तिणीं विप्पजहित्ता मुण्डे जाव पव्वइए। संस्कृत छाया- अयं च खलु सोमिलो ब्राह्मणः समिधाया: अर्थाय द्वारावत्या: नगर्या: बहिः पूर्वं निर्गतः समिधः च दर्भांश्च कुशांश्च पत्रामोटं च गृह्णाति, गृहीत्वा तत: प्रतिनिवर्तते।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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