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________________ तृतीय वर्ग - आठवाँ अध्ययन ] 45} संस्कृत छाया- ततः खलु सा देवकी देवी अर्हतः: अरिष्टनेमे: अंतिके एतदर्थं श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्टा यावत् हृदया, अर्हन्तम् अरिष्टनेमिम् वन्दते, नमस्यति । वन्दित्वा नमस्यित्वा यत्रैव ते षडनगारा तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य तान् षडपि अनगारान् वन्दते नमस्यति । वन्दित्वा नमस्यित्वा आगतप्रस्नुता (स्तन्यप्रस्रवणा) प्रफुल्ललोचना परिक्षिप्तकंचुका दीर्णवलयभुजा (बाहू) धाराहतकदंबपुष्पकं इव समुच्छ्वसित रोमकूपा तान् षडप्यनगारान् अनिमेषया दृष्ट्या प्रेक्षमाणा प्रेक्षमाणा सुचिरं निरीक्षते, निरीक्ष्य वन्दते नमस्यति । वन्दित्वा, नमस्यित्वा यत्रैव अर्हन् अरिष्टनेमिः तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य अर्हन्तम् अरिष्टनेमिम् त्रिः कृत्वा आदक्षिणं प्रदक्षिणां करोति, कृत्वा वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यित्वा तमेव धार्मिकम् यानप्रवरम् दूरोहति, दूरुह्य यत्रैव द्वारावती नगरी तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य द्वारावती नगरीम् अनुप्रविशति । अनुप्रविश्य यत्रैव स्वकं गृहम् यत्रैव बाह्या उपस्थानशाला तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य धार्मिकात् यानप्रवरात् प्रत्यवरोहति, प्रत्यवरुह्य यत्रैव स्वकं वासगृहम्, यत्रैव स्वकं शयनीयम् तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य, स्वके शयनीये निषीदति । अन्वयार्थ-तए णं सा देवई देवी = तब वह देवकी देवी, अरहओ अरिट्ठणेमिस्स = अरिहंत अरिष्टनेमिनाथ के, अंतिए एयमटुं सोच्चा = पास यह बात सुनकर, निसम्म हट्ठतुट्ठा जाव = मनन कर यावत् हृष्टतुष्ट, हियया, अरहं अरिट्ठणेमि = हृदय वाली ने अरिहन्त अरिष्टनेमि, वंदइ नमसइ । वंदित्ता नमंसित्ता = को वन्दना की, नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार करके, जेणेव ते छ अणगारा तेणेव उवागच्छइ = जहाँ वे छ: अनगार थे वहीं आई, उवागच्छित्ता ते छप्पि अणगारे = आकर उन छ: ही मुनिवरों को, वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता = वन्दन-नमस्कार करती है, वन्दन-नमस्कार करके, आगयपण्या = स्तनों से दूध झराती हुई, पप्फुयलोयणा कंचुय पडिक्खित्तिया = प्रफुल्लित नयन वाली कंचुकी के बन्धन जिसके टूट गये हैं, दरियवलयबाहा = हर्षातिरेक से जिसकी बाहुओं के कड़े चटक गये हैं, धाराहय-कलंब-पुप्फगंविव = वर्षा की धारा से सिक्त कदंबपुष्प की तरह, समूससिय रोमकूवा = जिसके रोमकूप उच्छ्वसित हो रहे हैं, ते छप्पि अणगारे = ऐसी वह उन छहों अनगारों को, अणिमिसाए दिट्ठीए = अपलक दृष्टि से देखती हुई-, पेहमाणी, पेहमाणी सुचिरं = देखती हुई बहुत समय तक, निरिक्खइ, निरिक्खित्ता = देखती रही, देखकर, वंदइ, नमसइ । वंदित्ता, नमंसित्ता = वन्दना नमस्कार करके, जेणेव अरहा अरिट्रणेमि = जहाँ भगवान अरिष्टनेमि थे, तेणेव उवागच्छइ = वहीं पर आ जाती
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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