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________________ { 44 [अंतगडदसासूत्र टिप्पणी-देवकी देवी के पुत्रों का हरिणेगमेषी देव द्वारा संहरण-देवकी देवी ने पूर्व जन्म में अपनी जेठानी के छह रत्न चुराये थे, उसके बदले में उसके छह पुत्र चुराये गये । कथा-सुलसा और देवकी पूर्व जन्म में देवरानी-जेठानी थी। एक बार देवकी ने सुलसा के छह रत्न चुराकर भय के वश किसी चूहे के बिल में डाल दिये । बिल में छुपाने का मतलब यह था कि खोजने पर कदाचित् मिल भी जाय तो मेरी बदनामी नहीं हो, और चहों ने इधर-उधर कर दिया समझकर सन्तोष कर लिया जाय । कदाचित नहीं मिले तो कुछ दिनों बाद में उन्हें अपने बना लूँगी । संयोगवश वे रत्न देवरानी को मिल गये और उनकी नजरों में चूहा चोर समझा गया। कहा जाता है कि वह चूहा हरिणेगमेषी देव बना और देराणी सुलसा के रूप में उत्पन्न हुई । पूर्व भव की रत्नचोरी के फलस्वरूप देवकी के पुत्रों का हरण हुआ, और चूहे पर चोरी को दोष मँढ़ा जाने से हरिणेगमेषी देव ने पुत्रों का हरण कर सुलसा के पास पहुँचाया। हरिणेगमेषी देव चूहे का जीव कहा गया है। सूत्र मूल तए णं सा देवई देवी अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा जाव हियया, अरहं अरिडणेमिं वंदइ नमसइ । वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव ते छ अणगारा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते छप्पि अणगारे वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता। आगय-पण्या पप्फुयलोयणा कंचुय पडिक्खित्तिया दरियवलयबाहा धाराहयकलंब-पुप्फगं विव समूससिय रोमकूवा ते छप्पि अणगारे अणिमिसाए दिट्ठीए पेहमाणी, पेहमाणी सुचिरं निरिक्खइ, निरिक्खित्ता वंदइ, नमसइ। वंदित्ता, नमंसित्ता जेणेव अरहा अरिहणेमि तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिठ्ठणेमिं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बारवई नयरी अणुप्पविसइ । अणुप्पविसित्ता जेणेव सए गिहे, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव सए वासघरे, जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, सयंसि सयणिज्जंसि निसीयड।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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