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________________ 33} तृतीय वर्ग - आठवाँ अध्ययन ] हुआ राजा वसुदेव की महारानी देवकी के प्रासाद में प्रविष्ट हुआ। उस समय वह देवकी रानी उन दो मुनियों के एक संघाड़े को अपने यहाँ आते देखकर हृष्ट-तुष्ट चित्त के साथ आनन्दित हुई। प्रीतिवश उसका मन परमाह्लाद को प्राप्त हुआ, हर्षातिरेक से उसका हृदय कमल प्रफुल्लित हो उठा। आसन से उठकर वह सात आठ पग (कदम) मुनियुगल के सम्मुख गई। सामने जाकर उसने तीन बार दक्षिण की ओर से उनकी प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा कर उन्हें वन्दन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार के पश्चात् जहाँ भोजनशाला है, वहाँ आई । भोजनशाला में आकर कृष्ण के प्रसाद योग्य सिंहकेसर मोदकों से एक थाल भरा और थाल भर कर उन मुनियों को प्रतिलाभ दिया, प्रतिलाभ देने के पश्चात् देवकी ने उन्हें पुन: वन्दन-नमन किया एवं वंदन-नमन कर उन्हें प्रतिविसर्जित किया अर्थात् लौटने दिया। सूत्र 4 मूल- तयाणंतरं च णं दोच्चे संघाडए बारवईए नयरीए उच्च जाव पडिविसज्जेइ। तयाणंतरं च णं तच्चे संघाडए उच्चणीय जाव पडिलाभेइ, पडिलाभित्ता एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया! कण्हस्स वासुदेवस्स इमीसे बारवईए नयरीए दुवालस-जोयण-आयामाए नवजोयण-वित्थिण्णाए पच्चक्खं देवलोग-भूयाए समणा णिग्गंथा उच्चणीयमज्झिमाइंकुलाइंघरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणा भत्तपाणं नो लभंति ? जण्णं ताई चेव कुलाई भत्तपाणाए भुज्जो भुज्जो अणुप्पविसंति। संस्कृत छाया- तदनन्तरं च खलु द्वितीय: संघाटक: द्वारावत्यां नगर्यां उच्चैः यावत् प्रतिविसर्जयति । तदनन्तरं च खलु तृतीय: संघाटक: उच्चनीच यावत् प्रतिलाभयति, प्रतिलाभ्य एवमवदत्-किं खलु देवानुप्रिया ! कृष्णस्य वासुदेवस्य अस्यां द्वारावत्यां नगर्यां द्वादशयोजनायामायां नव योजनविस्तीर्णायां प्रत्यक्ष देवलोकभूतायां श्रमणा: निर्ग्रन्था: उच्चनीचमध्यमानि कुलानि गृहसमुदायस्य भिक्षाचर्यायै अटन्त: भक्तपानं न लभन्ते ? येन खलु तानि चैव कुलानि भक्तपानाय भूयोभूय: अनुप्रविशन्ति । अन्वयार्थ-तयाणंतरं च णं दोच्चे संघाडए = इसके बाद मुनियों का दूसरा संघाड़ा, बारवईए नयरीए उच्च जाव = द्वारिका नगरी में उच्च यावत् नीच आदि, पडिविसज्जेइ = कुलों में भ्रमण करता हुआ आया पूर्ववत् उसको भी विसर्जित किया । तयाणंतरं च णं तच्चे संघाडए = इसके बाद मुनियों का
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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