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________________ तृतीय वर्ग - प्रथम अध्ययन ] 23} राजा था । तत्थणं भद्दिलपुरे नयरे नागे = उस भद्दिलपुर नगर में नाग, नाम गाहावई होत्था = नाम का गाथापति था, (जो), अड्डे जाव अपरिभूए = आढ्य यावत् अपरिभूत था । तस्सणं नागस्स गाहावइस्स सुलसा = उस नाग गाथापति की सुलसा, नामं भारिया होत्था = नाम की स्त्री थी, सुकुमाला जाव सुरूवा = (जो) सुकुमार यावत् सुरूपवती थी। तस्स णं नागस्स गाहावइस्स = उस नाग गाथापति का, पुत्ते सुलसाए भारियाए अत्तए = पुत्र सुलसा पत्नी का आत्मज, अणीयसेणे नामं कुमारे होत्था = अनीकसेन नाम का कुमार था, सुकुमाले जाव सुरूवे = (जो) सुकोमल यावत् रूपवान था । पंचधाईपरिक्खित्ते = पाँच धायमाताओं से घिरा हुआ प्रतिपालित था, तं जहा = वे ये हैं-, खीरधाई, मज्जणधाई, मंडणधाई = क्षीरधात्री, मज्जनधात्री, मंडनधात्री, कीलावणधाई, अंकधाई = क्रीड़नधात्री, अंकधात्री। जहा दढपइण्णे जाव = जैसे दृढप्रतिज्ञ उसी प्रकार यावत्, गिरिकन्दर-मल्लीणेव चंपकवर-पायवे = गिरिकन्दरा में लीन चम्पक वृक्ष के समान, सुहंसुहेणं परिवड्डइ = सुखपूर्वक बढ़ने लगा। भावार्थ-श्री सुधर्मा-“हे जम्बू! उस काल उस समय में भद्दिलपुर' नाम का नगर था । वह नगर उत्तम नगरों के सभी गुणों से युक्त धन-धान्यादि से परिपूर्ण, भय रहित एवं भवनादि से समृद्ध वर्णन करने योग्य था। उस भद्दिलपुर नगर के बाहर ईशान कोण में श्रीवन नाम का उद्यान था । वह फलदार व फूलों से वेष्टित वृक्षों से युक्त था । वहाँ जितशत्रु' राजा राज करता था। उस नगर में 'नाग' नाम का गाथापति रहता था। वह अत्यन्त समृद्धिशाली और अपरिभूत यानी जिसका कोई अपमान नहीं कर सके, ऐसा था। उस नाग गाथापति के सुलसा नाम की भार्या थी । जो सुकुमाल यावत् अत्यन्त रूपवती थी। उस नाग गाथापति का पुत्र और सुलसा भार्या का अंगज अनीकसेन नाम का कुमार था । वह सुकोमल यावत् शरीर से रूपवान् था । वह पाँच धाय-माताओं से घिरा रहता था, जो उसका लालन-पालन करती थीं-जैसे-1. क्षीर धात्री यानी दूध पिलाने वाली धाय, 2. मज्जनधात्री-स्नान कराने वाली धाय, 3. मंडनधात्री-वस्त्रादि से अलंकृत करने वाली धाय, 4. क्रीड़ा धात्री-क्रीड़ा यानी खेल खिलाने वाली धाय, और 5. अंक धात्री-गोद में खिलाने वाली धाय । दृढ़ प्रतिज्ञ कुमार के समान यावत् पहाड़ी गुफा में लीन-सुरक्षित चंपक वृक्ष के समान वह सुखपूर्वक बढ़ने लगा। सूत्र 3 मूल- तएणं तं अणीयसेणं कुमारं साइरेगं अट्ठवास-जायं अम्मापियरो कलायरिय जाव भोगसमत्थे जाए यावि होत्था। तएणं तं अणीयसेणं कुमारं उम्मुक्क-बालभावं जाणित्ता अम्मापियरो सरिसयाणं सरिसवयाणं, सरिसत्तयाणं, सरिसलावण्ण-रूवजोवण्ण गुणोववेयाणं, सरिसेहिंतो कुलेहिंतो आणिल्लियाणं बत्तीसाए इन्भवरकण्णगाणं एगदिवसेणं पाणिं गिण्हावेंति।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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