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________________ [ अंतगडदसासूत्र तत्पश्चात् अरिहन्त अरिष्टनेमि भगवान ने अन्यदा किसी दिन उस द्वारिका नगरी के नन्दनवन नामक उद्यान से प्रस्थान किया । वहाँ से प्रस्थान करके बाहर जनपद में विचरण करने लगे || 7 || सूत्र 8 { 14 मूल संस्कृत छाया तए णं से गोयमे अणगारे अण्णया कयाइं जेणेव अरहा अरिट्ठणेमी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठनेमिं तिक्खुत्तो आया पयाहिणं करेइ, करिता, वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीइच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अन्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । एवं जहा खंदओ, तहा बारस भिक्खुपडिमाओ फासेइ, फासत्ता गुणरयणं वि तवोकम्मं तहेव फासेइ, निरवसेसं जहा खंदओ तहा चिंतइ, तहा आपुच्छइ, तहा थेरेहिं सद्धिं सेत्तुंजं दुरूहइ, मासिया संलेहणाए बारस वरिसाइं परियाए जाव सिद्धे ॥8 ॥ ततः खलु सः गौतमः अनगारः अन्यदा कदाचित् यत्रैव अर्हन् अरिष्टनेमिस्तत्रैव उपागच्छति उपागत्य अर्हन्तम् अरिष्टनेमिम् त्रिःकृत्वा आदक्षिणप्रदक्षिणां करोति, कृत्वा वंदते, नमस्यति, वंदित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत् इच्छामि खलु भदन्त ! युष्माभिः अभ्यनुज्ञातः सन् मासिकीं भिक्षुप्रतिमाम् उपसंपद्य विहर्तुम् । एवं यथा स्कंदकः तथा द्वादश भिक्षुप्रतिमा: स्पृशति स्पृष्ट्वा गुणरत्नमपि तपः कर्म तथैव स्पृशति, निरवशेषं यथा स्कन्दकः तथा चिन्तयति, तथा आपृच्छति, तथा स्थविरैः सार्द्धं शत्रुञ्जयं दूरोहति मासिक्या संलेखनया द्वादश वर्षाणि पर्यायः (दीक्षाकाल :) यावत् सिद्धः ॥ 8 ।। अन्वायार्थ-तए णं से गोयमे अणगारे = इसके बाद वह गौतम अणगार, अण्णया कयाई जेणेव = अन्यदा किसी दिन जहाँ, अरहा अरिट्ठणेमी तेणेव उवागच्छड़ = अरिहन्त अरिष्टनेमि थे वहीं आये । उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठनेमिं = आकर (उन्होंने) अरिहन्त अरिष्टनेमि को, तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ = तीन बार आदक्षिणा-प्रदक्षिणा की। करित्ता, वंदइ, नमंसइ, = प्रदक्षिणा करके वन्दन - नमस्कार किया। वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी = वन्दन - नमस्कार करके ऐसे बोले -, इच्छामि णं भंते ! = “हे
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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