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________________ प्रथम वर्ग - प्रथम अध्ययन ] 11) संस्कृत छाया- तत्र खलु द्वारावत्यां नगर्याम् अन्धकवृष्णि: नाम राजा परिवसति महता हिमवान् वर्णकः तस्य खलु अन्धकवृष्णेः राज्ञः धारिणीनामा देवी अभवत्, वर्णकः ततः सा धारिणी देवी अन्यदा कदाचिद् तस्मिन् तादृशके (कृतपुण्योपसेव्ये) शयनीये एवं यथा महाबल:-स्वप्नदर्शनं कथनं जन्म बालत्वं कलाश्च यौवनं पाणिग्रहणं कान्ता प्रासाद भोगाश्च विशेष: गौतमो नाम्ना अष्टानां राजवरकन्यानाम् एकस्मिन् दिवसे पाणिं ग्राहयन्ति, अष्टौ अष्टौ दायः ।। 6 ।। अन्वायार्थ-तत्थ णं बारवईए नयरीए = उस द्वारिका नगरी में, अंधगवण्ही नामं राया परिवसइ = अन्धकवृष्णि नाम के राजा रहते थे, महया हिमवन्त वण्णओ। = जो महाहिमवान् की भाँति वर्णनीय थे। तस्स णं अंधगवण्हिस्स रण्णो = उस अंधकवृष्णि राजा के, धारिणी नामं देवी होत्था, वण्णओ = धारिणी नाम की वर्णन करने योग्य रानी थी, तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाई = तदनन्तर वह धारिणी रानी किसी दिन, तंसि तारिससि सयणिज्जंसि एवं जहा महाबले = कदाचित् पुण्यवान् के योग्य, शय्या पर सोई हुई थी जैसे महाबल । सुमिणदंसण-कहणा = स्वप्न दर्शन, उसका कथन, जम्म बालत्तणं कलाओ य = जन्म, बाल लीला, कला ज्ञान, जोव्वण-पाणिग्गहणं = यौवन, पाणिग्रहण, कंता पासाय भोगा य = रम्य प्रासाद एवं भोगादि, नवरं गोयमो नामेणं = विशेष गौतम नाम रखा, अट्ठण्हं रायवरकन्नाणं = आठ उत्तम राजकन्याएँ, एगदिवसेणं पाणिं गिण्हावेंति, अट्ठठ्ठओ दाओ। = एक ही दिन पाणिग्रहण, आठ-आठ का दहेज ।। 6 ।। __ भावार्थ-“उस द्वारिका नगरी में अंधकवृष्णि नाम के एक राजा भी रहते थे, जो महान् हिमालय पर्वत की भाँति शक्तिशाली एवं मर्यादापालक थे। उनकी धारिणी नाम की रानी थी, जो वर्णन करने योग्य थी। वह धारिणी रानी किसी एक पुण्यशालिनी के योग्य शय्या पर सोई हुई थी, जिसका वर्णन महाबल के प्रकरण में वर्णित वर्णन के समान समझ लेना चाहिये । जैसे कि उस धारिणी राणी का स्वप्न देखना, पति को निवेदन करना, बालक का जन्म लेना, उसका बाल्यकाल बीतना और कलाचार्यों के पास शिक्षण लेना, युवावस्था को प्राप्त होना, योग्य कन्याओं से उसका पाणिग्रहण होना, रमणीय प्रासाद में रहना एवं सांसारिक भोगों को भोगना आदि।" “महाबलकुमार के वर्णन से यहाँ इतना विशिष्ट है कि उस कुमार का नाम गौतमकुमार रक्खा गया, आठ उत्तम कुलीन राजकन्याओं के साथ एक ही दिन में उसका पाणिग्रहण कराया गया एवं उसे दहेज के रूप में आठ-आठ हिरण्य कोटि प्रदान की गई।।6।।"
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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