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________________ { 230 [अंतगडदसासूत्र परिशिष्ट 3 सन्दर्भ सामग्री आर्य सुधर्मा का परिचयतेणं कालेणं. ....... भावेमाणे विहरति । ज्ञाताधर्मकथांग अध्ययन-1 अर्थ-उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के शिष्य आर्य सुधर्मा नामक स्थविर थे, वे जाति सम्पन्न-उत्तम मातृ पक्ष वाले, कुल सम्पन्न-उत्तम पितृपक्ष वाले थे। उत्तम संहनन से उत्पन्न बल से युक्त थे, अनुत्तर विमानवासी देवों की अपेक्षा भी अधिक रूपवान्, विनयवान्, चार ज्ञान सम्पन्न, क्षायिक सम्यक्त्ववान् लाघववान् (द्रव्य से अल्प उपधि वाले और भाव से ऋद्धि, रस एवं साता रूप तीनों गारवों से रहित) थे। ओजस्वी अर्थात् मानसिक तेज से सम्पन्न, या चढ़ते परिणाम वाले, तेजस्वी अर्थात् शारीरिक कान्ति से देदीप्यमान्, वचस्वी सगुण वचन वाले यशस्वी क्रोध को जीतने वाले, मान को, माया को एवं लोभ को जीतने वाले, पाँचों इन्द्रियों को, निद्रा को, तथा परीषहों को जीतने वाले, जीवित रहने की कामना और मृत्यु के भय से रहित, तप प्रधान अर्थात् अन्य मुनियों की अपेक्षा अधिक तप करने वाले, या उत्कृष्ट तप करने वाले, गुणप्रधान अर्थात् गुणों के कारण उत्कृष्ट या उत्कृष्ट संयम गुण वाले करणप्रधान-पिण्डविशुद्धि आदि करणसत्तरी में प्रधान, चरणप्रधान महाव्रत आदि चरणसत्तरी के गुणों में प्रधान, निग्रहप्रधान, अनाचार में प्रवृत्ति न करने के कारण उत्तम तत्त्व का निश्चय करने में प्रधान, इसी प्रकार आर्जव, मार्दव, लाघव प्रधान अर्थात् क्रिया करने में कौशल प्रधान, क्षमाप्रधान, गुप्तिप्रधान, मुक्ति (निर्लोभता) में प्रधान, देवता अधिष्ठित प्रज्ञप्ति आदि विद्याओं में प्रधान, मंत्रप्रधान अर्थात् हरिणगमेषी आदि देवों से अधिष्ठित मन्त्रों से प्रधान, ब्रह्मचर्य अथवा समस्त कुशल अनुष्ठानों की प्रधानता वाले वेदप्रधान अर्थात् लौकिक एवं लोकोत्तर आगमों में निष्णात, नय-प्रधान, नियमप्रधान, भाँति-भाँति के अभिग्रह धारण करने में कुशल, सत्यप्रधान, शौचप्रधान, ज्ञानप्रधान, दर्शनप्रधान, चारित्रप्रधान, उदार अर्थात् अपनी उग्र तपश्चर्या से समीपवर्ती अल्पसत्त्व वाले मनुष्यों में भय उत्पन्न करने वाले, घोर अर्थात् परीषहों, इन्द्रियों एवं कषायों आदि आन्तरिक शत्रुओं को निग्रह करने में कठोर, घोरव्रती अर्थात् महाव्रतों को आदर्श रूप पालन करने वाले, घोर तपस्वी, उत्कृष्ट ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले, शरीर-संसार के त्यागी, विपुल तेजोलेश्या को अपने शरीर में ही समाविष्ट करके रखने वाले, चौदह पूर्वो के ज्ञाता, चार ज्ञान के धनी, पाँच सौ साधुओं से परिवृत्त, अनुक्रम से चलते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम में विचरण करते हुए संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। (ज्ञाताधर्मकथांग अध्ययन-1) महाबल चरित्र-भगवती सूत्र शतक 11 उद्देशक 11 से संक्षेप करके लिया है-उस काल उस समय हस्तिनागपुर नामक एक नगर था जो वर्णनीय था। वहाँ सहस्राम्रवन नामक उद्यान था जो वर्णनीय था। उस हस्तिनागपुर नगर में बल नामक राजा था जो वर्णन करने योग्य था। उस बल राजा के प्रभावती नाम की रानी थी, उसके हाथ-पैर सुकुमाल थे, इत्यादि वर्णन जानना चाहिये। किसी दिन पाँच वर्ण के सरस और सुगन्धित पुष्प-पुञ्जों के उपचार से युक्त ऐसे भवन में
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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