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________________ [226 [ अंतगडदसासूत्र प्रथम- द्वितीय वर्गयोः दश दश उद्देशका:, तृतीय वर्गे त्रयोदश उद्देशकाः, चतुर्थपंचमवर्गयोः दश दश उद्देशकाः, षष्ठवर्गे षोडश उद्देशका:, सप्तमवर्गों त्रयोदश उद्देशकाः, अष्टमवर्गे दश उद्देशकाः । शेषं यथा ज्ञाताधर्मकथानाम् । " अन्वायार्थ - एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं = इस प्रकार हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर, आइगरेणं = जो कि धर्म की आदि करने वाले, जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स = यावत् मुक्ति पधारे हैं, ने आठवें, अंगस्स अंतगडदसाणं = अंग अंतकृद्दशासूत्र का, अयमट्ठे पण्णत्ते त्ति बेमि= यह अर्थ कहा है, ऐसा मैं कहता हूँ। अंतगडदसाणं अंगस्स = अंतकृदशा अंग में एगो सुयक्खंधो अठ्ठवग्गा = एक श्रुतस्कन्ध और आठ वर्ग हैं। अट्ठसु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जंति = आठ ही दिनों में इनका वाचन होता है। तत्थ पढमबितियवग्गे दस दस उद्देगा इसमें प्रथम व द्वितीय वर्ग में दस-दस उद्देशक हैं, तड़यवग्गे तेरस उद्देगा, तीसरे वर्ग में तेरह उद्देशक हैं, चउत्थपंचम वग्गे दस उद्देसगा = चौथे और पाँचवे वर्ग में दस दस उद्देशक हैं, छट्ठवग्गे सोलस उद्देसगा = छठे वर्ग में सोलह उद्देशक हैं, सत्तमवग्गे तेरस उद्देसगा = : = आठवें वर्ग में दस उद्देशक हैं। सेसं जहा सातवें वर्ग में तेरह उद्देशक हैं, अट्ठम वग्गे दस उद्देसगा नायाधम्मकहाणं = शेष वर्णन ज्ञाताधर्म कथा के सदृश है। भावार्थ - श्री सुधर्माह्न “हे जूम्ब ! अपने शासन की अपेक्षा से धर्म की आदि करने वाले श्रमण भगवान् महावीर, जो मोक्ष पधार गये हैं, ने आठवें अंग अन्तकृद्दशा का यह भाव, यह अर्थ प्ररूपित किया है। = - भगवान से जैसा भाव, जैसा अर्थ मैंने सुना, उसी प्रकार मैंने तुम्हें कहा है।” इस अन्तकृदशा सूत्र में एक श्रुतस्कन्ध है और आठ वर्ग हैं। आठ दिनों में इसका वाचन होता है। इसमें प्रथम और दूसरे वर्ग के दस-दस अध्ययन हैं। तीसरे वर्ग में तेरह उद्देशक (अध्ययन) हैं। चौथे और पाँचवें वर्ग में दस-दस उद्देशक (अध्ययन) हैं। छठे वर्ग में सोलह अध्ययन हैं। सातवें वर्ग में तेरह और आठवें वर्ग में दस अध्ययन हैं। शेष वर्णन ज्ञाता धर्मकथांग सूत्र के अनुसार है। ।। अंतगइदसांगतं समर्थ ॥ || अंतकृदशांगसूत्र समाप्त ॥ नोट :- इस सूत्र में नगर आदि का वर्णन संक्षेप में किया गया है। नगर आदि से लेकर बोधि-लाभ और अन्त क्रिया आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र के समान जानना चाहिये ।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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