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________________ { 198 [अंतगडदसासूत्र पडिमं = इस प्रकार अष्ट अष्टमिका भिक्षु प्रतिमा, चउसठ्ठीए राइदिएहिं = चौंसठ रात दिनों में, दोहिं य अट्ठासीएहिं भिक्खा-सएहिं = दौ सौ अट्ठासी भिक्षा दत्तियों से, अहासुत्तं जाव आराहित्ता = सूत्रानुसार यावत् आराधना करके, नवणवमियं भिक्खु-पडिमं उवसंज्जित्ताणं विहरइ = आर्या सुकृष्णा नवनवमिका भिक्षु प्रतिमा को अंगीकार, करके विचरने लगी। पढमे नवए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं = प्रथम नवक में एक-एक भोजन की दत्ति, पडिगाहेड एक्केक्कं पाणगस्स = ग्रहण करती और एक-एक पानी की, जाव नवमे नवए = यावत् नवमें नवक में, नवणव दत्ती भोयणस्स पडिगाहेइ = प्रतिदिन नव दत्ति भोजन की ग्रहण करती। नव पाणगस्स = और नव दत्ति पानी की, एवं खलु नवणवमियं भिक्ख-पडिमं = इस प्रकार नवनवमिका भिक्षुप्रतिमा, एकासीइ राइदिएहिं = इक्यासी दिनों में, चउहिं पंचोत्तरेहिं, भिक्खासएहिं = चार सौ पाँच भिक्षादत्तियों से , अहासुत्तं जाव आराहित्ता =सूत्रानुसार यावत् आराधना करके फिर, दसदसमियं भिक्खपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरड = दशदशमिका भिक्षप्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगी। पढमे दसए एक्केकं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ = प्रथम दशक में एक एक भोजन की दत्ति ग्रहण करती और, एक्केक्कं पाणगस्स = एक-एक पानी की। जाव दसमे दसए दस-दस भोयणस्स, दसदस पाणगस्स = यावत् दसवें दशक में दस-दस दत्ति भोजन की और दस दस पानी की ग्रहण की। एवं खलु एयं दसदसमियं = इस प्रकार वह दशदशमिका, भिक्खुपडिमं एक्केणं राइंदियसएणं = भिक्ष प्रतिमा एक सौ रात-दिनों में, अद्धछठेहिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं = पाँच सौ पचास भिक्षादत्तियों से सूत्रानुसार, जाव आराहेइ आराहित्ता बहूहि = यावत् आराधना करके बहुत से, चउत्थ जाव = उपवास यावत्, मासद्धमासविविहतवोकम्मेहिं = मास, अर्द्धमास आदि विविध तप:कर्म से, अप्पाणं भावेमाणी विहरइ = आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। तए णं सा सुकण्हा अज्जा = फिर वह सुकृष्णा आर्या, तेणं ओरालेणं जाव सिद्धा = उस उदार श्रेष्ठ तप से यावत् सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गई। भावार्थ-इसी प्रकार पाँचवें अध्ययन में सुकृष्णा देवी का भी वर्णन समझना चाहिये। यह भी श्रेणिक राजा की रानी और कोणिक राजा की छोटी माता थी। भगवान का उपदेश सुनकर श्रमण-दीक्षा अंगीकार की। इसमें विशेषता यह है कि आर्य चन्दनबाला आर्या की आज्ञा प्राप्तकर आर्या सुकृष्णा सप्त सप्तमिका' भिक्षु प्रतिमा रूप तप अंगीकार करके विचरने लगी, जिसकी विधि इस प्रकार हैप्रथम सप्ताह में एक दत्ति (दाती) भोजन की और एक ही दत्ति पानी की ग्रहण की जाती है। दूसरे सप्ताह में दो-दो दत्ति भोजन की और दो पानी की, तीसरे सप्ताह में तीन दत्ति भोजन की और तीन पानी की, चौथे सप्ताह में चार चार, पाँचवें सप्ताह (सप्तक) में पाँच-पाँच, छठे में छह छह, और सातवें सप्ताह में सात दत्ति भोजन की ली जाती है और सात ही पानी की ग्रहण की जाती है। इस प्रकार उनपचास (49) रात-दिन में एक सौ छियानवे (196) भिक्षा की दत्तियाँ होती हैं।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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