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________________ { 184 सूत्र 6 मूल संस्कृत छाया [ अंतगडदसासूत्र त णं सा काली अज्जा तेणं ओरालेणं जाव धमणि-संतया जाया यावि होत्था। से जहा नामए इंगाल सगडी वा जाव सुहुहुयासणे इव भासरासिपलिच्छण्णा तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए अईव अईव उवसोमाणी चिट्ठइ || 6 || मूल तत: खलु सा काली आर्या तेन उदारेण यावत् धमनि-संतता जाता चाप्यभवत् । तद् यथा नाम अंगारशकटी वा यावत् सुहुतहुताशन इव भस्मराशिप्रतिच्छन्ना तपसा तेजसा तपस्तेजः श्रिया च अतीव अतीव उपशोभमाना तिष्ठति ॥16 ॥ अन्वयार्थ-तए णं सा काली अज्जा = तपस्या के बाद वह काली आर्या, तेणं ओरालेणं जाव धमणि - = उस प्रधान तपस्या से यावत् सूख गई, संतया जाया यावि होत्था = और उसकी धमनियाँ दीखने लगीं। से जहा नामए इंगाल सगडी वा जाव सुहुयहुयासणे = जैसे कोयले की भरी गाड़ी में चलते हुए आवाज निकलती है वैसे ही उनकी, हड्डियाँ कड़कड़ बोलने लगी, यावत्, इव भासरासिपलिच्छण्णा = भस्म से ढ़की हुई सुहुत अग्नि के समान, तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए = तपस्या के तेज से, अईव अईव उवसोभेमाणी चिट्ठइ = अतीव शोभायमान थी ।16 || भावार्थ - इतनी तपस्या करने के बाद काली आर्या उस प्रधान तपस्या से यावत् सूख गई और उसकी खुली नसें दिखने लगी। जैसे कोयले से भरी गाड़ी में चलते समय आवाज निकलती है वैसे उठते-बैठते, चलते-फिरते काली आर्या की हड्डियाँ भी कड़कड़ बोलने लगी। होम की हुई अग्नि के समान एवं भस्म से ढ़ी हुई आग जैसे भीतर से प्रज्वलित रहती है, वैसे तपस्या के तप तेज की शोभा से आर्या काली का शरीर अत्यन्त शोभायमान हो रहा था ॥16 ॥ सूत्र 7 तए णं तीसे कालीए अज्जाए अण्णया कयाइं पुव्वरत्तावरत्तकाले अयमज्झत्थिए, जहा खंदयस्स चिंता जाव अत्थि उठ्ठाणे कम्मे, बले, वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे, सद्धाधिई-संवेगे वा ताव मे सेयं कल्लं जाव जलंते अज्जचंदणं अज्जं आपुच्छित्ता अज्जचंदणा अज्जाए अब्भणुण्णायाए समाणीए संलेहणा झूसणा - झूसियाए भत्तपाणपडियाइक्खियाए कालं अणवकंखमाणीए विहरित्तए त्तिकट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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