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________________ { 172 [अंतगडदसासूत्र सामी समोसढे = उस नगर में महावीर स्वामी पधारे। परिसा निग्गया = परिषद् वन्दन करने को गई। तए णं सा नंदा देवी इमीसे = तब वह नंदा महारानी भगवान, कहाए लट्ठा समाणा जाव = महावीर के पधारने का समाचार, हट्ठतुट्ठा = सुनकर यावत् हृष्टतुष्ट हुई, कोडुबिय पुरिसे सद्दावेइ = और आज्ञाकारी सेवकों को बुलाया।, सद्दावित्ता = बुलाकर, जाणं जहा पउमावई = पद्मावती की तरह धार्मिक यान लाने की आज्ञा दी। जाव एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता = यावत् ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, वीसं वासाई परियाओ, = बीस वर्ष चारित्र्य पालनकर, जाव सिद्धा = यावत् सिद्ध हई। एवं तेरस वि नंदागमेण = इसी प्रकार नन्दवती आदि 12 ही अध्ययन नन्दा के समान जानें । नेयव्वाओ = निक्षेपक यानी भगवान ने सातवें, णिक्खेवओ = वर्ग का यह भाव फरमाया है। भावार्थ-श्री जम्बू- "हे भगवन् ! प्रभु ने सातवें वर्ग के तेरह अध्ययन कहे हैं, तो प्रथम अध्ययन का हे पूज्य ! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने क्या अर्थ कहा है ?" श्री सुधर्मा स्वामी- “इस प्रकार निश्चय हे जम्बू ! उस काल उस समय में राजगृह नामक एक नगर था। उसके बाहर गुणशील नामक एक उद्यान था । वहाँ श्रेणिक राजा राज्य करता था । वह वर्णन-योग्य था । उस श्रेणिक राजा की नन्दा नाम की रानी थी, जो वर्णन-योग्य थी। प्रभु महावीर राजगृह नगर के उद्यान में पधारे । जन परिषद् वंदन करने को गयी। उस समय नंदा देवी भगवान के आने की खबर सुनकर बहुत प्रसन्न हुई और आज्ञाकारी सेवक को बुलाकर धार्मिक रथ लाने की आज्ञा दी। पद्मावती की तरह इसने भी दीक्षा ली यावत् ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । बीस वर्ष तक चारित्र-पर्याय का पालन किया यावत् अन्त में सिद्ध हुई । इसी प्रकार नन्दवती आदि बाकी 12 ही अध्ययन नंदा के समान हैं। यह निक्षेपक है। इस प्रकार हे जम्बू ! भगवान ने सातवें वर्गका यह भाव कहा है। ।। इइ सत्तमो वग्गो-सप्तम वर्ग समाप्त ।।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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