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________________ सप्तम वर्ग] 171} श्री सुधर्मा स्वामी-“सातवें वर्ग के तेरह अध्ययन कहे गये गये हैं, जो इस प्रकार हैं:-1. नन्दा, 2. नन्दवती, 3. नन्दोत्तरा, 4. नन्दश्रेणिका, 5. मरुता, 6. सुमरुता, 7. महामरुता, 8. मरुद्देवा, 9. भद्रा 10. सुभद्रा, 11. सुजाता, 12. सुमनायिका, 13. भूतदत्ता । ये सब श्रेणिक राजा की रानियाँ थीं।" सूत्र 2 मूल- जइणंभंते! तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए, सेणिए राया, वण्णओ। तस्स णं सेणियस्स रण्णो नंदा नामं देवी होत्था। वण्णओ। सामी समोसढे। परिसा णिग्गया। तए णं सा नंदा देवी इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जाव हट्टतुट्ठा कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता, जाणं जहा पउमावई। जाव एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता वीसं वासाइं परियाओ, जाव सिद्धा । एवं तेरस वि नंदागमेण नेयव्वाओ। णिक्खेवओ।।2।। संस्कृत छाया- यदि खलु भदन्त ! त्रयोदश अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि, प्रथमस्य खलु भदन्त ! अध्ययनस्य श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन कः अर्थः प्रज्ञप्तः ? एवं खलु जम्बू ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहे नगरे, गुणशिलकं चैत्यम्, श्रेणिक: राजा, वर्ण्य: तस्य खलु श्रेणिकस्य राज्ञः नन्दा नाम देवी अभवत् । वर्ष्या (वर्णकः)। (तत्र नगरे) स्वामी समवसृतः । परिषद् निर्गता । ततः खलु सा नंदा देवी अस्याः कथाया: लब्धार्था सती यावत् हृष्टतुष्टा कौटुम्बिक-पुरुषान् शब्दयति । शब्दयित्वा यानं यथा पदमावती । यावद एकादशाङ्गानि अधीत्य, विंशति: वर्षाणि पर्याय:, यावत् सिद्धा । एवं त्रयोदशापि देव्य: नंदा-गमेन नेतव्याः । निक्षेपकः ।।2 ।। अन्वयार्थ-जइ णं भंते! = हे भगवन् ! यदि सातवें वर्ग के, तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, = तेरह अध्ययन बतलाये हैं, पढमस्स णं भंते ! = तो हे पूज्य ! प्रथम, अज्झयणस्स समणेणं = अध्ययन का श्रमण भगवान, जाव संपत्तेणं के अटे = यावत् मुक्ति को प्राप्त प्रभु ने क्या, पण्णत्ते ? = अर्थ फरमाया है? एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं = हे जम्बू ! उस काल, तेणं समएणं रायगिहे नयरे = उस समय में राजगृह नगर में, गुणसिलए चेइए, = गुणशिलक नाम का उद्यान था। सेणिए राया, वण्णओ = श्रेणिक राजा थे जो वर्णन करने योग्य थे। तस्स णं सेणियस्स रण्णो = उस श्रेणिक राजा के, नंदा नामं देवी होत्था = नन्दा नाम की रानी थी जो कि, वण्णओ = वर्णन करने योग्य थी।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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