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________________ 165} षष्ठ वर्ग - पन्द्रहवाँ अध्ययन ] खलु अहं अम्मयाओ = “हे माता-पिता !, जंचेव जाणामि, तं चेव न = मैं जिसको जानता हूँ उसी को नहीं जानता हूँ। __ जाणामि, जंचेव न जाणामि = जिसको नहीं जानता हूँ, तं चेव जाणामि।" = उसी को जानता हूँ।" तए णं तं अइमुत्तं कुमारं = तब उस अतिमुक्त कुमार से, अम्मापियरो एवं वयासी- = माता-पिता इस प्रकार बोले-, “कहणं तुमं पुत्ता ! जंचेव = “हे पुत्र ! यह कैसे है कि तुम जिसको, जाणासि तं चेव न जाणासि = जानते हो उसी को नहीं जानते हो, जंचेव न जाणासि तं चेव जाणासि?" = जिसे नहीं जानते हो उसको जानते हो?"||6।। भावार्थ-इसके पश्चात् अतिमुक्त कुमार अपने माता-पिता के पास आकर बोले-“अम्ब! आपकी आज्ञा पाकर मैं दीक्षा लेना चाहता हूँ।' इस पर माता-पिता अतिमुक्तकुमार से इस प्रकार बोले-“हे पुत्र! अभी तुम बालक हो, असंबुद्ध हो। अभी धर्म को तुम क्या जानो?" अतिमुक्तकुमार बोला- हे माता-पिता! मैं जिसको जानता हूँ, उस को नहीं जानता । और जिसको नहीं जानता हूँ उसको जानता हूँ।" माता-पिता-“पुत्र ! तुम जिसको जानते हो उसको नहीं जानते और जिसको नहीं जानते उसको जानते हो, यह कैसे ?' सूत्र 7 मूल- तए णं से अइमुत्ते कुमारे अम्मा-पियरो एवं वयासी-"जाणामि अहं अम्मयाओ! जहा जाएणं अवस्सं मरियव्वं, न जाणामि अहं अम्मयाओ! काहे वा कहिं वा कहं वा केवच्चिरेण वा? न जाणामि अहं अम्मयाओ! केहिं कम्माययणेहिं जीवा नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवेसु उववज्जंति, जाणामि णं अम्मयाओ! जहा सएहिं कम्माययणेहिं जीवा नेरइय जाव उववज्जंति। एवं खलु अहं अम्मयाओ! जं चेव जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि। तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए जाव पव्वइत्तए।" तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहिं
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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