SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ { 154 [अंतगडदसासूत्र दसममज्झयणं-दशम अध्ययन मूल- एवं सुदंसणे विगाहावई, नवरं वाणियगामे नयरे, दूइपलासए चेइए, पंचवासा परियाओ, विपुले सिद्धे ।।10।। संस्कृत छाया- एवं सुदर्शन: अपि गाथापतिः, विशेष:-वाणिज्यग्रामं नगरं, द्युतिपलाशकं चैत्यम्, पंचवर्षाणि पर्याय:, विपुले सिद्धः ।10। अन्वयार्थ-एवं सुदंसणे विगाहावई, = इसी प्रकार सुदर्शन गाथापति, नवरं वाणियगामे नयरे, = वाणिज्य ग्रामवासी, दूइपलासए चेइए पंचवासा परियाओ = द्युतिपलाश उद्यान, पाँच वर्ष दीक्षा पाल कर, विपुले सिद्ध = विपुलगिरि पर सिद्ध हुए ।।10।। भावार्थ-दशवें सुदर्शन गाथापति का वर्णन भी इसी प्रकार समझें । विशेष यह था कि वाणिज्य ग्राम नगर के बाहर द्युतिपलाश नाम का उद्यान था। वहाँ दीक्षित हुए। वे पाँच वर्ष चारित्र पालकर विपुलगिरि से सिद्ध हुए। ।। इइ दसममज्झयणं-दसवाँ अध्ययन समाप्त ।। एगारसममज्झयणं-ग्यारहवाँ अध्ययन मूल- एवं पुण्णभद्दे वि गाहावई, वाणियगामे नयरे, पंचवासा परियाओ, विपुले सिद्धे ।।11।। संस्कृत छाया- एवं पूर्णभद्रोऽपि गाथापतिः वाणिज्यग्राम नगरं पंचवर्षाणि पर्याय:, विपुले सिद्धः ।।11।। अन्वयार्थ-एवं पुण्णभद्दे वि गाहावई, = इसी प्रकार पूर्णभद्र गाथापति, वाणियगामे नयरे, पंचवासा = वाणिज्य-ग्राम नगर वासी, पाँच वर्ष चारित्र, परियाओ, विपुले सिद्ध = पालन कर विपुलगिरि पर सिद्ध हए ।।11।। भावार्थ-पूर्णभद्र गाथापति का वर्णन भी ऐसे ही समझें । विशेष यह था कि वे वाणिज्यग्राम नगर के रहने वाले थे। पाँच वर्ष का चारित्र पालन कर वे भी विपुलाचल पर्वत पर सिद्ध हुए। ।। इइ एगारसममज्झयणं-ग्यारहवाँ अध्ययन समाप्त ।।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy