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________________ {144 [ अंतगडदसासूत्र श्री सुदर्शन - “हे देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो ।” इसके बाद वह सुदर्शन श्रमणोपासक अर्जुनमाली के साथ जहाँ गुणशील उद्यान में श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ आया और अर्जुनमाली के साथ श्रमण भगवान महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा पूर्वक वंदन-नमस्कार कर उनकी सेवा करने लगा। उस समय श्रमण भगवान महावीर ने सुदर्शन श्रमणोपासक, अर्जुनमाली और उस विशाल सभा के सम्मुख धर्म कथा कही । सुदर्शन धर्मकथा सुनकर अपने घर लौट गया । सूत्र 15 मूल तणं से अज्जुण मालागारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ एवं वयासी - सद्दहामि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं जाव अब्भुट्ठेमि । 'अहासुहं देवाणुप्पिया!' तए णं से अज्जुणए मालागारे उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करित्ता जाव अणगारे जाए जाव विहरइ । तए णं से अज्जुणए अणगारे जं चेव दिवस मुंडे जाव पव्वइए तं चेव दिवसं समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं उग्गिण्हइ - कप्पइ मे जावज्जीवाए छठ्ठे-छट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणस्स विहरित्तए तिकड अयमेवारूवं अभिग्गहं उग्गिण्हइ, उग्गिण्हित्ता जावज्जीवाए जाव विहरइ ।।15।। संस्कृत छाया- ततः खलु सः अर्जुनः मालाकार: श्रमणस्य भगवतः महावीरस्य अन्तिके धर्मं श्रुत्वा, निशम्य हृष्टतुष्टः एवमवदत् - श्रद्दधामि खलु भदन्त ! नैर्ग्रन्थ्यं प्रवचनं यावत् अभ्युत्तिष्ठामि । यथासुखं देवानुप्रिय ! ततः खलु सः अर्जुनः मालाकारः उत्तरपौरस्त्याम् दिग्भागम् अपक्राम्यति, अपक्रम्य स्वयमेव पंचमुष्टिकं लोचं करोति, कृत्वा यावत् अनगारः जात: यावद् विहरति । ततः खलु सः अर्जुनः अनगारः यस्मिन्नेव दिवसे मुण्डो यावत् प्रव्रजितः तस्मिन्नेव दिवसे श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा इममेतद्रूप मभिग्रहम् अभिगृह्णाति-कल्पते मम यावज्जीवं षष्ठं षष्ठेन अनिक्षिप्तेन तपः कर्मणा आत्मानं भावयतः विहर्तुम्
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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