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________________ षष्ठ वर्ग - तृतीय अध्ययन ] 143} गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासइ । तए णं समणे भगवं महावीरे सुदंसणस्स समणोवासयस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स तीसे य धम्मकहा। सुदंसणे पडिगए | 14 | संस्कृत छाया ततः खलु सः अर्जुनः मालाकार: सुदर्शनं श्रमणोपासकं एवमवदत् - तत् इच्छामि खलु देवानुप्रिय ! अहमपि त्वया सार्द्धं श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दितुं यावत् पर्युपासितुम्। ‘यथा सुखं देवानुप्रिय !' ततः खलु सः सुदर्शनः श्रमणोपासकः अर्जुनकेन मालाकारेण सार्द्धं यत्रैव गुणशिलकः चैत्यः यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरः तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य अर्जुनकेन मालाकारेण सार्द्धं श्रमणं भगवन्तं महावीरं त्रिः कृत्वा यावत् पर्युपासते । ततः खलु श्रमणः भगवान् महावीरः सुदर्शनाय श्रमणोपासकाय अर्जुनाय मालाकाराय तस्यै च धर्मकथा सुदर्शनः प्रतिगत: ।14। अन्वयार्थ-तए णं से अज्जुणए मालागारे सुदंसणं = तब वह अर्जुन माली सुदर्शन, समणोवासयं एवं वयासी- = श्रमणोपासक से इस प्रकार बोला- तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! = हे देवानुप्रिय !, अहमवि तुमए सद्धिं समणं = मैं भी चाहता हूँ तुम्हारे साथ श्रमण, भगवं महावीरं वंदित्तए = भगवान महावीर को वन्दन नमस्कार, जाव पज्जुवासित्तए = यावत् उनकी सेवा करने के लिए जाना । अहासुहं |देवाणुप्पिया ! = हे देवानुप्रिय ! जैसा सुख हो वैसा करो, तए णं से सुदंसणे समणोवासए = इसके बाद वह सुदर्शन श्रमणोपासक, अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं = अर्जुन मालाकार के साथ, जेणेव गुणसिलए चेइए = जहाँ गुणशीलक उद्यान था, जेणेव समणे भगवं महावीरे = जहाँ श्रमण भगवान विराजते थे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता = वहाँ आया और आकर, अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं = अर्जुन मालाकार के साथ, समणं भगवं महावीरं = श्रमण भगवान महावीर को, तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासइ = तीन बार वन्दन करके सेवा करने लगा। तए णं समणे भगवं महावीरे = उस समय श्रमण भगवान महावीर ने, सुदंसणस्स समणोवासयस्स = सुदर्शन श्रमणोपासक, अज्जुणयस्स मालागारस्स तीसे = अर्जुन माली और उस विशाल सभा के सम्मुख धर्म कथा कही । य धम्मकहा = धर्मकथा, सुदंसणे पडिगए : सुनकर सुदर्शन लौट गया ।।14।। = भावार्थ-यह सुनकर अर्जुनमाली सुदर्शन श्रमणोपासक से इस प्रकार बोला- “हे देवानुप्रिय ! मैं भी तुम्हारे साथ श्रमण भगवान महावीर की वन्दना नमस्कार करना यावत् सेवा करना चाहता हूँ।”
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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