SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूल { 88 [अंतगडदसासूत्र की नगरी थी, जहा पढमे = जैसे प्रथम अध्याय में वर्णन किया गया है उसी प्रकार । कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव विहरइ = कृष्ण वासुदेव वहाँ राज्य करते थे।।2 ।। भावार्थ-श्री जम्बू-“हे भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने चौथे वर्ग में दस अध्ययन कहे हैं । तो उनमें से हे पूज्य ! प्रथम अध्ययन श्री सुधर्मा स्वामी-“हे जम्बू! उस काल व उस समय में द्वारिका नाम की एक नगरी थी, जिसका वर्णन प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन में किया जा चुका है। श्री कृष्ण वासुदेव वहाँ राज्य कर रहे थे।” “उस द्वारिका नगरी में महाराज वसुदेव' और रानी ‘धारिणी' निवास करते थे। रानी धारिणी अत्यन्त सुकुमार, सुन्दर और सुशीला थी। एक समय कोमल सेज पर सोती हुई उस धारिणी रानी ने सिंह का स्वप्न देखा। उस स्वप्न का वृत्तान्त अपने पतिदेव को सुनाया। सूत्र 3 तत्थ णं बारवईए नयरीए वसुदेवे राया, धारिणी देवी। वण्णओ। जहा गोयमो, नवरं जालिकुमारे पण्णासओ दाओ। बारसंगी सोलस्स वासा परियाओ सेसं जहा गोयमस्स जाव सेत्तुंजे सिद्धे। एवं मयालि, उवयालि, पुरिससेणे, वारिसेणे य।।3।। संस्कृत छाया- तत्र खलु द्वारावत्यां नगर्यां वसुदेव: राजा धारिणी देवी । वर्ण्य: । यथा गौतमः, विशेषस्तु जालिकुमार: पंचाशत् दायः । द्वादशांगी, षोडश वर्षाणि पर्याय: शेषं यथा गौतमस्य यावत् शत्रुजये सिद्धः । एवं मयालिः उवयालिः पुरुषसेनः वारिसेनश्च ।।3।। अन्वायार्थ-तत्थ णं बारवईए नयरीए = वहाँ द्वारिका नगरी में, वसुदेवे राया, धारिणी देवी = वसुदेव राजा धारिणी रानी । वण्णओ। = जो कि वर्णन योग्य थे, जहा गोयमो = गौतम कुमार के समान, नवरं जालिकुमारे = विशेष यह कि जालिकुमार ने, पण्णासओ दाओ = युवावस्था प्राप्त कर पचास कन्याओं से विवाह किया तथा पचास करोड़ का दहेज मिला । बारसंगी सोलस्स वासा परियाओ = जालि मुनि ने भी बारह अंगों का ज्ञान सीखा, सोलह वर्ष की दीक्षा पर्याय का पालन किया, सेसं जहा गोयमस्स जाव सेत्तुंजे सिद्धे = शेष सब जैसे गौतम कुमार की तरह यावत् शत्रुञ्जय पर्वत पर जाकर सिद्ध हुए, एवं मयालि, उवयालि = इसी प्रकार मयालि कुमार, पुरिससेणे, वारिसेणे य = उवयालि कुमार, पुरुषसेन और वारिसेन का वर्णन जानना चाहिये ।।3।। भावार्थ-इसके बाद पूर्व में वर्णित गौतम कुमार की तरह उनके एक तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम 'जालि कुमार' रखा गया। जब वह युवावस्था को प्राप्त हुआ, तब उसका विवाह पचास कन्याओं के साथ किया गया और उन्हें पचास-पचास करोड़ सौनेया आदि का दहेज मिला।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy