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________________ {XI} (2) ऐसा समझा जाता है कि जिसके साथ कर्म बाँधा गया है, उसी के साथ उसका फल भोग होता है। यह भी आवश्यक नहीं है। यदि ऐसा होता तो अर्जुन अणगार उस भव में मुक्त नहीं हो सकता था। कभी-कभी यह भी संभव है कि उस व्यक्ति के साथ ही फल भोगा जाता है। जैसा सोमिल के साथ गजसुकुमाल का पूर्वभव का संबंध माना जाता है। (3) जिसने जितनी आयु बाँधी है उसे उसको भोगना ही पड़ता है, अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस धारणा का भी अंतगड़ निराकरण करता है। अंतगड़ में सोमिल के प्रकरण में 'ठिइभेएण' शब्द से आयु कर्म के जल्दी पूर्ण होने अथवा अकाल मरण की पुष्टि होती है। ठाणांगसूत्र में आयु टूटने के 7 कारण बताये हैं। अंतगड़ सूत्र 8वाँ अंगसूत्र औचित्य :____ तीर्थङ्कर भगवन्तों की देशना को सुनकर गणधर सूत्रों की रचना करते हैं जिसे द्वादशांगी कहते हैं। इस द्वादशांगी में अंतगड़दसाङ्ग सूत्र का नम्बर 8वाँ है इसके औचित्य पर विचार करें तो-मुक्ति के अव्यबाध सुख को प्राप्त करने का मार्ग है धर्म। “आचार: प्रथमो धर्मः" इस उक्ति के अनुसार मुक्ति के मार्ग धर्म का प्रथम सोपान आचार है। उस आचार-पंचाचार का विस्तृत वर्णन सर्वप्रथम अपेक्षित होने से पहला स्थान आचारांग को दिया गया है 'धर्म व आचार के सम्बन्ध में विविध दर्शनों की मान्यताएँ क्या-क्या रही है जिनको समझना अनिवार्य है। अत: इसके बाद सूत्रकृतांग को स्थान दिया है। 1 से 10 तक या 1 से करोड़ों तक की संख्याओं के माध्यम से पदार्थों का बोध प्राप्त कराने के लिए ठाणांग व समवायांग को रखा गया। इन चारों अंगसूत्रों की विषय-वस्तुओं पर विस्तृत व्याख्या करने हेतु 5वाँ स्थान विवाहप्रज्ञप्ति को दिया गया। तत्त्वज्ञान को सरलता से समझाने के लिए काल्पनिक या वास्तविक दृष्टान्तों, कथानकों के माध्यम से स्पष्ट करने हेतु ज्ञाताधर्मकथांग को 6ठा स्थान प्राप्त हुआ। आंशिक रूप से धर्म की आराधना करने वाला भी सुगति को प्राप्त कर मुक्ति को नजदीक कर लेता है। ___10 श्रावकों के जीवन चरित्र से उपासकदशांग प्रेरणा प्रदान करता है। सम्पूर्णतया धर्म की आराधना करके जिन महापुरुषों ने अंतिम समय में केवलज्ञान के साथ ही आयुष्यपूर्ण होने से मुक्ति को प्राप्त कर लिया ऐसे प्रेरणास्पद जीवन-चरित्रों का वर्णन करने वाला आठवाँ अंग अंतगड़दसाङ्ग सूत्र रखा गया। आयुष्यकर्म शेष रहने से जिन्होंने सर्वार्थसिद्ध विमान को प्राप्त किया उनका वर्णन अणुत्तरोववाई में तथा साधना के आनुषंगिक फल के रूप में प्राप्त लब्धियों का वर्णन प्रश्नोत्तरों के माध्यम से प्रश्नव्याकरण में तथा साधना के साथ उपार्जित शुभाशुभ कर्मों के फलों का वर्णन करने वाला सुखविपाक व दु:खविपाक तथा इतिहास, भूगोल, खगोल आदि सभी विषयों की विस्तार से जानकारी प्रदान करने वाला दृष्टिवाद अंतिम स्थान पर रखा गया है।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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