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________________ {X} (8) प्रतिदिन घर के अपने से छोटे भाई-बहिन, बच्चे, नौकर आदि से पूछ-परख करना। कोई भी समस्या हो तो उसे ध्यान से सुनना, समाधान करने का प्रयास करना उनके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। चिंतन-कुछ समय बच्चों आदि के साथ व्यतीत करूँगा। __(9) अपने ग्राम नगर में नजदीक संत-सती विराजमान हो तो अवश्य दर्शन-वन्दन, प्रवचन का लाभ लें। चिंतन-पुण्योदय से संत-दर्शन होते हैं, संत-दर्शन से पुण्य का उपार्जन होता है। __(10) घर-परिवार, समाज में कोई भी दीक्षा लेना चाहे तो उन्हें यथाशक्ति सहयोग करना चाहिए, दीक्षा का महत्त्व बताना चाहिए, घर वालों को समझाया जा सकता है। चिंतन-दीक्षा लेने को तत्पर किसी को भी अंतराय नहीं दूंगा। (11) मिथ्यादृष्टि देवों के कुचक्र में नहीं फँसना चाहिए। उनके निमित्त से कभी कोई कार्य हो भी जाय तो भी उनसे दूर ही रहना चाहिये नहीं तो अर्जुनमाली के समान पापी बनना पड़ता है। चिंतन-वीतराग देव को ही अपना आराध्य देव मानूँगा। (12) हमें जो शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, धन, भूमि, सत्ता, विद्वत्ता आदि की प्राप्ति हुई है, हम उसका विवेकपूर्ण सदुपयोग करें तो हमारा यह जीवन उन्नत, सार्थक एवं मुक्ति प्राप्ति के योग्य बन सकता है। चिंतन-किसी भी उपलब्धि का अहंकार नहीं करूँगा। (13) सुंदर व सशक्त शरीर प्राप्त कर उसे भोगों में न लगाकर तपस्या करके सफल बनाना चाहिए। चिंतन-प्रतिदिन नवकारसी आदि कोई न कोई तप अवश्य करूँगा। (14) जहाँ भी सेवा का अवसर दिखाई दे अवश्य लाभ लेना चाहिए। श्रीकृष्ण की तरह। चिंतनप्रतिदिन कोई न कोई सेवा का कार्य अवश्य करूँगा। भान्त धारणाओं का निराकरण : यों तो अंतगड़ सूत्र धर्माकथानुयोग का सूत्र माना जाता है क्योंकि इसमें सभी आत्माओं का चरित्रचित्रण हुआ है। परंतु इसमें कई भ्रान्त धारणाओं का निराकरण हुआ है (1) प्राय: यह समझा जाता है कि पूर्व संचित कर्मों का ज्यों का त्यों भोग करना पड़ता है लेकिन अंतगड़ सूत्र में अर्जुनमाली एवं गजसुकुमाल की साधना इसका प्रमाण है कि यह आवश्यक नहीं है कर्म को ज्यों का त्यों भोगना पड़े। साधना के द्वारा कर्मों की स्थिति व अनुभाग को घटाया जा सकता है, इसे स्थितिघात एवं रसघात कहा जाता है। अर्जुनमाली ने 1141 जीवों की हत्या के पाप को 6 माह की अल्पावधि में ही क्षय कर दिया।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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