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________________ { 76 [अंतगडदसासूत्र पुरुषस्य उपरि द्वेषं कुरु एवं खलु कृष्ण ! तेन पुरुषेण गजसुकुमालाय अनगाराय साहाय्यं दत्तम् । अन्वयार्थ-तए णं अरहा अरिट्ठणेमी = तब भगवान नेमिनाथ, कण्हं वासुदेवं एवं वयासी = कृष्ण वासुदेव को इस प्रकार बोले-, एवं खलु कण्हा ! गजसुकुमालेणं = ऐसा है कृष्ण ! गजसुकुमाल, अणगारेणं मम कल्लं = मुनि ने कल दिन के, पुव्वावरण्हकाल-समयंसि = पिछले भाग में मुझको, वंदइ नमसइ = वंदन नमस्कार किया, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी- = वन्दन नमस्कार करके इस प्रकार कहा, 'इच्छामि णं जाव उवसंपज्जित्ताणं विहरइ = आपकी आज्ञा हो तो एक रात्रि की महा प्रतिमा धारण कर विचरना चाहता हूँ। तए णं तं गयसुकुमालं अणगारं = इसके बाद उस गजसुकुमाल मुनि को, एगे पुरिसे पासइ = एक पुरुष ने देखा, पासित्ता आसुरत्ते जाव सिद्धे = देख कर क्रुद्ध हुआ, यावत् गजसुकुमाल मुनि आयु पूर्ण कर सिद्ध हो गये । तं एवं खलु कण्हा! गयसुकुमालेणं = इस प्रकार हे कृष्ण! गजसुकुमाल, अणगारेणं साहिए अप्पणो अढे = मुनि ने अपना कार्य सिद्ध कर लिया । तए णं से कण्हे = तब कृष्ण ने, वासुदेवे अरहं अरिट्ठणेमिं एवं वयासी- = भगवान अरिष्टनेमी को इस प्रकार कहा, के स णं भंते ! से पुरिसे = हे पूज्य ! वह अप्रार्थनीय-मृत्यु, अप्पत्थिय पत्थए जाव परिवज्जिए = को चाहने वाला यावत् लज्जारहित, जे णं ममं सहोदरं कणीयसं = कौन पुरुष है ? जिसने मेरे सहोदर छोटे, भायरं गयसुकुमालं अणगारं = भाई गजसुकुमाल मुनि को, अकाले चेव जीवियाओ ववरोविए? = असमय ही जीवन से वियुक्त कर दिया? तए णं अरहा अरिट्ठणेमी = तब अरिहंत अरिष्टनेमिनाथ, कण्हं वासुदेवं एवं वयासी- = कृष्ण वासुदेव को इस प्रकार बोले-, मा णं कण्हा ! तुमं तस्स पुरिसस्स = हे कृष्ण ! तुम उस पुरुष के, पओसमावज्जाहि = ऊपर द्वेष मत करो, एवं खलु कण्हा ! तेणं पुरिसेणं = हे कृष्ण ! इस प्रकार उस, गयसुकुमालस्स अणगारस्स = पुरुष ने निश्चय ही गजसुकुमाल मुनि को, साहिज्जे दिण्णे = सहायता प्रदान की है। भावार्थ-अर्हत् अरिष्टनेमि ने कृष्ण वासुदेव को उत्तर दिया- “हे कृष्ण ! वस्तुत: कल दिन के अपराह्न काल के पूर्व भाग में गजसुकुमाल मुनि ने मुझे वन्दन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार निवेदन किया-“हे प्रभो! आपकी आज्ञा हो तो मैं महाकाल श्मशान में एक रात्रि की महा भिक्षु प्रतिमा धारण करके विचरना चाहता हूँ।" यावत् मेरी अनुज्ञा प्राप्त होने पर वह गजसुकुमाल मुनि महाकाल श्मशान में जा कर भिक्षु की महाप्रतिमा धारण करके ध्यानस्थ खड़े हो गये। इसके बाद उन गजसुकुमाल मुनि को एक पुरुष ने देखा और देखकर उन पर बड़ा क्रुद्ध हुआ।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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