SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ { ix } व पद का उच्चारण बार-बार करके देखना चाहिए। जल्दी व अधिक याद करने की अपेक्षा शुद्ध याद करने का लक्ष्य रखना चाहिए। उच्चारण शुद्धि हेतु इन तीन नियमों को अवश्य स्मरण रखें - (अ) मात्रा संबंधी नियम -अक्षर पर लगने वाली मात्रा का उच्चारण यदि छोटी मात्रा है तो धीरे से करना तथा बड़ी मात्रा हो तो उच्चारण लम्बा करना चाहिए। (ब) अनुस्वार संबंधी नियम-शब्द के अंत में आने वाले अनुस्वार का उच्चारण आधा ‘म् ́ होता है, शब्द के बीच में अनुस्वार आने पर उसका उच्चारण अनुस्वार के अगले वर्ण के वर्ग का पाँचवाँ अक्षर होता है। (स) संयुक्ताक्षर संबंधी नियम-शब्द के प्रारंभ में संयुक्ताक्षर होने पर अगले अक्षर पर जोर दें। जैसे-त्याग में 'या' पर जोर दें। यदि बीच में संयुक्ताक्षर हो तो उसके पहले वाले अक्षर पर जोर दें। जैसे- चक्खुदयाणं में 'च' पर जोर देकर बोलना चाहिए। इसी प्रकार अन्य भी कुछ नियम हैं, उन्हें ध्यान में रखने से उच्चारण व लेखन की शुद्धता रहती है। (3) प्रत्येक पाठ के शब्दार्थ पर ध्यान दें - भाव-विशुद्धि के लिए पाठों के शुद्ध उच्चारण के साथ प्रत्येक पाठ के शब्दों के अर्थ पर ध्यान देना चाहिए। बिना अर्थ के मूल पाठों का उच्चारण अपूर्ण ही माना जाता है। मूल से 14 पूर्वों का अध्ययन करने पर भी अर्थ के अभाव में आर्य स्थूलिभद्र को दसपूर्वी ही माना गया है, चौदहपूर्वी नहीं नंदीसूत्र में कहा है- सुतत्थो खलु पढमो सर्वप्रथम सूत्र व अर्थ पढ़ना चाहिए। प्राचीन परंपरानुसार गुरु शिष्य को पढ़ाते समय मूल पाठ के साथ उसका अर्थ भावार्थ भी समझाते हैं जिससे पाठ याद करने के साथ भावविशुद्धि में भी सहायता मिलती है। सामायिक प्रतिक्रमण सिखाते समय भी इस बात का ध्यान रखा जाय कि पाठों के शब्दों के अर्थ भी साथ में समझा दिये जाँय तो जुड़ाव अच्छा होता है। (4) पाठ का प्रयोजन व उसकी विषय-वस्तु को हृदयंगम करें जिस पाठ का उच्चारण किया जा रहा है उसके शब्दार्थ के साथ ही यदि पाठ को बोलने का प्रयोजन व उसमें जिन-जिन बातों का वर्णन हुआ है, उसे समझ लिया जाता है तो उच्चारण के साथ ही उसका ध्यान उसमें लग जाता है। अत: पाठ का उद्देश्य व विषय-वस्तु को हृदयंगम करना आवश्यक है, इसके लिए प्रत्येक पाठ के प्रश्नोत्तर दिये हुए हैं उन्हें पढ़कर समझना चाहिए। मूल पाठ और शब्दार्थ कंठस्थ करने वालों को आगे इन्हीं बातों का अध्ययन करवाना चाहिए। आध्यात्मिक शिक्षण बोर्ड, जोधपुर के पाठ्यक्रम में इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए आवश्यक को इसी रूप में स्थान दिया गया है, उसके माध्यम से भी इसका ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है, इस पुस्तक के परिशिष्ट में संबंधित प्रश्नोत्तर दिये गये हैं, वे भी पठनीय हैं। (5) प्रत्येक क्रिया नियत विधि के अनुसार करें - भावविशुद्धि के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक पाठ के अर्थ सहित शुद्ध उच्चारण के साथ उसकी नियत विधि का पूर्णतया पालन करें। जितनी बार तिक्खुत्तो के पाठ से वंदना करना है उसे आवर्तन सहित पूरी विधि से उठ बैठकर करें। खमासमणो का पाठ, 99 अतिचार प्रकट में, श्रावक सूत्र के पाठ, पाँच पदों की भाववंदना आदि की जो विधि है उसी अनुसार यदि प्रतिक्रमण किया जाय तो शारीरिक लाभ के साथ आध्यात्मिक लाभ भी पूरा मिलता है। भगवान द्वारा उपदेशित प्रत्येक विधि-विधान शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक सभी दृष्टियों से फायदेमंद हैं अत: उन्हें श्रद्धापूर्वक सविधि करने से विशेष निर्जरा है।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy