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________________ प्रथम अध्ययन - सामायिक ] संस्कृत छाया 19} अच्चक्खरं, पयहीणं, विणयहीणं, जोगहीणं, घोसहीणं, सुडुदिण्णं, दुट्टु-पडिच्छियं, अकाले कओ सज्झाओ, काले न कओ सज्झाओ, असज्झाइए सज्झायं, सज्झाइए न सज्झायं, भणता, गुणता, विचारता, ज्ञान और ज्ञानवंत पुरुषों की अविनय आशातना की हो तो (इन अतिचारों में मुझे कोई दिवस सम्बन्धी अतिचार लगा हो तो) तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥ आगमस्त्रिविध-प्रज्ञप्तस्तद्यथा - सुत्रागमः अर्थागमः तदुभयागमः । (तत्र ) यद् व्याविद्धं, व्यत्याम्रेडितं, हीनाक्षरं, अल्पाक्षरं, पदहीनं, योगहीनं, घोषहीनं, सुष्ठुदत्तं, दुष्टुप्रतीष्टम्, अकाले कृतः स्वाध्यायः, काले न कृतः स्वाध्यायः, अस्वाध्याये स्वाध्यायितं, स्वाध्याये न स्वाध्यायितं, तस्स मिथ्या मयि दुष्कृतम् ।। अन्वयार्थ - आगमे तिविहे = आगम तीन प्रकार का, पण्णत्ते= कहा गया है, तं जहा वह इस प्रकार है जैसे, सुत्तागमे = सूत्र (मूल पाठ) रूप आगम, अत्थागमे = अर्थ रूप आगम, तदुभयागमे : उभय (मूल-अर्थ युक्त) रूप आगम, जं= (आगम के विषय में जो अतिचार लगे हो) वे इस प्रकार हैं, वाइद्धं = इन आगमों में कुछ भी क्रम छोड़ कर अर्थात् पद अक्षर को आगे पीछे करके पढ़ा हो, वच्चामेलियं = एक सूत्र का पाठ अन्य सूत्र में मिलाकर पढ़ा गया हो। (अविराम की जगह विराम लेकर अथवा स्व कल्पना से सूत्र भाष्य रचकर सूत्र में मिलाकर पढ़ा हो ), हीणक्खरं, अच्चक्खरं = अक्षर घटा (कम) करके, बढ़ा करके बोला हो, पयहीणं, विणयहीणं = पद को कम करके, विनयरहित (अनादर भाव से) पढ़ा हो, जोगहीणं = मन, वचन व काया के योग रहित पढ़ा हो, घोसहीणं = उदात्त आदि के उचित घोष बिना पढ़ा हो, सुट्रुदिण्णं = शिष्य की उचित शक्ति से अधिक ज्ञान दिया हो, दुट्टुपडिच्छियं = दुष्ट भाव से ग्रहण किया हो, अकाले कओ सज्झाओ = अकाल में (असमय) स्वाध्याय किया हो, काले न कओ सज्झाओ = काल में स्वाध्याय न किया हो, असज्झाइए सज्झायं = अस्वाध्याय की स्थिति में स्वाध्याय किया हो, सज्झाइए न सज्झायं = स्वाध्याय की स्थिति में स्वाध्याय न किया हो । भावार्थ- आगम तीन प्रकार का है - 1. सुत्तागम, 2. अत्थागम, 3. तदुभयागम । जिसमें अक्षर थोड़े पर अर्थ सर्वव्यापक, सारगर्भित, संदेहरहित, निर्दोष तथा विस्तृत हो उसे विद्वान् लोक ‘सूत्र कहते हैं। सूत्र रूप आगम 'सूत्रागम' कहलाता है तथा जो मुमुक्षुओं से प्रार्थित हो उसे 'अर्थागम' कहते हैं। केवल सूत्रागम से प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकता, इसलिये सूत्र और अर्थरूप 'तदुभयागम' कहा है। इस आगम का पाठ करने में जो अतिचार - दोष लगा हो, उसका फल मिथ्या हो। वे अतिचार इस प्रकार हैं-(1) सूत्र के अक्षर उलट-पलट पढ़े हो। (2) एक ही शास्त्र में अलग-अलग स्थानों पर आये हुए
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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