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________________ प्रथम अध्ययन - सामायिक ] 13} योग आत्मा) को वोसिराता (त्यागता) हूँ। पाप कर्म से दूषित हुए पूर्व जीवन को त्यागना ही आत्मा को त्यागना है। जैन दर्शन ने साधक को निन्दा के साथ ही गर्दा की एक अन्य अनुपम भेंट प्रदान की है। आत्मशोधन के लिए गर्दा बहुत महत्त्वपूर्ण है, जहाँ निन्दा में साधक स्वयं एकान्त में बैठकर अपने पापों की निन्दा करता है, दूसरों के सम्मुख अपने पापों को प्रकट नहीं करता, वहाँ गर्दा में साधक (वह) गुरु के चरणों में आकर उनकी साक्षी से भी अपने पापों की आलोचना करता है। इच्छामि ठामि मूल- इच्छामि ठामि काउस्सग्गं' जो मे देवसिओ अइयारो कओ, काइओ, वाइओ, माणसिओ, उस्सुत्तो, उम्मग्गो, अकप्पो, अकरणिज्जो, दुज्झाओ, दुविचिंतिओ, अणायारो, अणिच्छियव्वो, असमणपाउग्गो, नाणे तह दंसणे, चरित्ते, सुए सामाइए, तिण्हं गुत्तीणं, चउण्हं कसायाणं, पंचण्हं महव्वयाणं, छण्हं जीवनिकायाणं, सत्तण्हं पिण्डेसणाणं, अट्ठण्हं पवयणमाऊणं, नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं, दसविहे समणधम्मे, समणाणं जोगाणं, जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। संस्कृत छाया- इच्छामि तिष्ठामि कायोत्सर्ग यो मया दैवसिको अतिचार: कृत: कायिको वाचिको मानसिको उत्सूत्र उन्मार्गो अकल्पोऽकरणाीयो दुातो दुर्विचिन्तितोऽनाचारेऽनेष्टव्योऽश्रमणप्रायोग्यो ज्ञाने तथा दर्शने चारित्रे श्रुते सामायिके, तिसृणां गुप्तीनां, चतुर्णां कषायाणां, पञ्चानां महाव्रतानां, षण्णां जीवनिकायानां, सप्तानां पिण्डैषणानामष्टानां प्रवचनमातृणां, नवानां ब्रह्मचर्यगुप्तीनां, दशविधे श्रमणधर्मे श्रमणानां योगानां यत्खण्डितं यद्विराधितं तस्य मिथ्या मे दुष्कृतम् ।। अन्वयार्थ-इच्छामि पडिक्कमिउं = मैं प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ, जो मे देवसिओ = जो मैंने दिवस सम्बन्धी, अइयारो कओ = अतिचार (दोष) सेवन किये हैं। (चाहे वे), काइओ, वाइओ, 1. कायोत्सर्ग के पहले बोलने पर 'इच्छामि ठामि काउस्सग्गं' कायोत्सर्ग में 'इच्छामि आलोउ' तथा अन्य स्थानों पर 'इच्छमि पडिक्कमिउं' बोलना चाहिए। 2. रात्रिक में राइओ, पाक्षिक में पक्खिओ, चातुर्मासिक में चाउम्मासिओ और सांवत्सरिक में संवच्छरिओ कहना चाहिये। कायोत्सर्ग में सभी पाठों में 'तस्स मिच्छा मि दुक्कडं' के स्थान पर 'तस्स आलोउं' बोलना चाहिये।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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